जानिए सिद्ध कुंजिका मंत्र, मंत्र के लाभ, अभ्यास की विधि|

 


जानिए सिद्ध कुंजिका मंत्र, मंत्र के लाभ, अभ्यास की विधि|

सिद्ध कुंजिका मंत्र बहुत ही चमत्कारी मंत्र माना जाता है। सिद्ध कुंजिका मंत्र जीवन में आने वाली हर प्रकार की समस्याओं को दूर कर देता है। भक्तों को सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का अगर गोपनीय जाप करते हैं तो इसका भी बहुत लाभ मिलता है। सिद्ध कुंजिका मंत्र आपको अचूक तरीके से लाभ पहुंचाता है। 

सिद्ध कुंजिका मंत्र बहुत ही चमत्कारी मंत्र माना जाता है। सिद्ध कुंजिका मंत्र जीवन में आने वाली हर प्रकार की समस्याओं को दूर कर देता है। भक्तों को सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का अगर गोपनीय जाप करते हैं तो इसका भी बहुत लाभ मिलता है। सिद्ध कुंजिका मंत्र आपको अचूक तरीके से लाभ पहुंचाता है। क्योंकि यह मंत्र और स्त्रोत अपने आप में सिद्ध माना जाता है। इसे सिद्ध करने की जरुरत नहीं पड़ती है। इस मंत्र का जाप करने पर माता आपकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं। हमेशा ध्यान रहे कि सिद्ध कुंजिका मंत्र का उपयोग किसी भी व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं करना चाहिए। क्योंकि सिद्ध कुंजिका मंत्र बहुत ही अचूक मंत्र होता है। इस सिद्ध कुंजिका मंत्र के बहुत से लाभ मिलते हैं। जैसे आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा है तो वह स्वयं ही नष्ट होने लगती है। सिद्ध कुंजिका मंत्र आपके सीखने की क्षमता को बढ़ा देता है। सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता आपके अंदर आने लगती है। स्मरण शक्ति बढ़ने लगती है। सिद्ध कुंजिका मंत्र के जाप से आपके अंदर की कला को उभारने में मदद मिलती है। आपको समाज में मान-सम्मान मिलना शुरू हो जाता है। आपके घर-परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ने लगती है। आपके अन्दर कर्ज को चुकाने की क्षमता आने लगती है। आपको नौकरी और व्यापार में लाभ मिलने शुरू हो जाते हैं। नौकरी में पदोन्नति की संभावना भी बढ़ने लगती है। हर तरह के भौतिक सुखों की प्राप्ति आपको होने लगती है। सिद्ध कुंजिका मंत्र के प्रभाव से नवग्रह के दोष भी शांत हो जाते हैं। सिद्ध कुंजिका मंत्र के प्रभाव से पति-पत्नी के संबंध मधुर होने लगते हैं। प्रेमी-प्रेमिकाओं के मनमुटाव दूर हो जाते हैं। समाज में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने का मौका मिलता है। आपकी बातों और हाव-भाव में आकर्षण बढ़ जाता है। इस सिद्ध कुंजिका मंत्र के प्रभाव से आपकी उम्र का प्रभाव आपके शरीर पर कम होता है। यह मंत्र आपके साहस को बढ़ाता है। इस मंत्र के प्रभाव से आपके शत्रु आपसे हमेशा दूर रहते हैं। आपकी बदनामी करने वाले व्यक्ति शांत हो जाते हैं। और आपके मुरीद बन जाते हैं। 

सिद्ध कुंजिका मंत्र का अभ्यास किसी भी शांत वातावरण या शांत कमरे में स्वच्छ और ढीले वस्त्र पहनकर किसी भी मुद्रा में बैठ जाएं। जो लोग जमीन पर नहीं बैठ सकते हैं तो ऐसे लोग कुर्सी-सोफा आदि पर बैठ जाएं। सबसे पहले दस बार सामान्य रूप से प्राणायाम करें। लंबी-गहरी सांस लें और छोड़ें। फिर अपने आज्ञाचक्र यानि दोनों नेत्रों के मध्य में ध्यान करते हुए सिद्ध कुंजिका मंत्र का जाप करें। सिद्ध कुंजिका मंत्र ।।ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ऊं ग्लौं हुं क्लीं जूं : ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।। अर्थात आप सिद्ध कुंजिका मंत्र का गुदगुदाकर जप करें। और आपकी अवाज दूर तक नहीं जानी चाहिए। 

सिद्ध कुंजिका मंत्र का जाप 15 मिनट तक करें। और इस तरह से इस अभ्यास को 41 दिन तक नियमित रूप से करें। इसके बाद आप देखेंगे कि सिद्ध कुंजिका मंत्र के चमत्कारी प्रभाव से आपकी मनोकामना जल्दी ही पूरी होगी। और इस तरह आश्चर्य जनक परिणाम देखकर आप चकित हो जाएंगे। सिद्ध कुंजिका मंत्र के नियम सिद्ध कुंजिका मंत्र बहुत ही पावरफुल और स्ट्रांग मंत्र है। इस मंत्र और माता भगवती में पूर्ण श्रद्धा और विश्वास होने पर ही आप इस मंत्र का जाप करें। सिद्ध कुंजिका मंत्र के अभ्यास में आपको जैसे-जैसे सफलता मिलती चली जाए, आप भी वैसे-वैसे ही अपने स्वभाव और आदतों में बदलाव ले आएं। याद रखें कि आप जब भी किसी प्रकार का आध्यात्मिक अभ्यास शुरू करते हैं तो तुरन्त प्रकृति आपकी परीक्षा लेनी शुरू कर देती है। इसलिए अपनी मजबूत इच्छाशक्ति को बनाए रखें। 

इस अभ्यास के द्वारा आप दूसरों की मदद भी कर सकते हैं। और सिद्ध कुंजिका मंत्र के अभ्यास में किसी गुरू अथवा आचार्य से दीक्षा लेने की जरुरत नहीं है। अगर आप नौकरी कर रहे हैं तो इस मंत्र को पूर्व दिशा की ओर मुख करके इसका जाप करें। अगर आप व्यापार कर रहे हैं तो सिद्ध कुंजिका मंत्र का आप पश्चिम दिशा की ओर मुख करके जाप करें। अगर आप लाटरी अथवा सट्टा आदि से जुड़े हैं तो आप उत्तर दिशा की ओर अपना मुख करके सिद्ध कुंजिका मंत्र का जाप करें। अगर आप प्रॉपटी, बिल्डर आदि कार्य करते हैं तो आप दक्षिण दिशा की ओर मुख करके इस मंत्र का जप करें। 18 वर्ष से अधिक आयु का कोई भी व्यक्ति सिद्ध कुंजिका मंत्र का जप कर सकता है। साधना काल में सभी स्त्री और पुरूषों को ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य है। यानि कोई भी स्त्री-पुरूष साधना काल के दौरान ना तो शारीरिक संबंध बनायें और ना ही किसी तरह का कोई गलत विचार अपने मन में लाएं। अभ्यास समाप्त होने के पश्चात अश्वनी मुद्रा-वज्रोली मुद्रा का पालन करें। अश्वनी मुद्रा-वज्रोली मुद्रा का प्रयोग करने से ब्रह्मचर्य की रक्षा होती है। 

॥ सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् ॥

शिव उवाच

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।

येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥1॥

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।

न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥2॥

कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।

अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥3॥

गोपनीयं प्रयत्‍‌नेनस्वयोनिरिव पार्वति।

मारणं मोहनं वश्यंस्तम्भनोच्चाटनादिकम्।

पाठमात्रेण संसिद्ध्येत्कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥4॥

 

॥ अथ मन्त्रः ॥

ॐ ऐं ह्रीं क्लींचामुण्डायै विच्चे॥

ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालयज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वलहं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥

॥ इति मन्त्रः ॥

 

नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।

नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥1॥

नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि।

जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे॥2॥

ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।

क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते॥3॥

चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।

विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥4॥

धां धीं धूं धूर्जटेः पत्‍‌नी वां वीं वूं वागधीश्‍वरी।

क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥5॥

हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।

भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥6॥

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं।

धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥7॥

पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।

सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥8॥

इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रंमन्त्रजागर्तिहेतवे।

अभक्ते नैव दातव्यंगोपितं रक्ष पार्वति॥

यस्तु कुञ्जिकाया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्।

न तस्य जायतेसिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥

॥ इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्॥

तत्सत्


(‘कुंजिका स्तोत्र’ और ‘बीसा यन्त्र’)

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