बीजापुर (BIJAPUR)
बीजापुर (BIJAPUR)
जिले के बारे में
बीजापुर जिला छत्तीसगढ़ राज्य के अठाइस जिलों में से एक है और बीजापुर शहर इस जिले का प्रशासनिक मुख्यालय है। यह पहले दंतेवाड़ा जिले का हिस्सा था। बीजापुर जिला छत्तीसगढ़ राज्य के दक्षिणी हिस्से में स्थित है। यह जिला उत्तर और उत्तर-पूर्व के अपने मूल जिले के भाग है, अर्थात दंतेवाड़ा जिले से। यह जिला छत्तीसगढ़ राज्य के दंतेवाड़ा जिले के पूर्व में, आंध्र प्रदेश राज्य के दक्षिण और पश्चिम के निचले आधे हिस्से पर और महाराष्ट्र राज्य के शेष पश्चिमी हिस्से में स्थित है। जिले का कुल क्षेत्रफल लगभग 6562.48 वर्ग किलोमीटर है। इसके चार ब्लॉक डिवीज़न बीजापुर, भैरमगढ़, भोपालपट्टनम और उसूर हैं। जिले के अधिकांश भाग में पहाड़ियां हैं| जिले का सबसे ऊंचा शिखर बैलाडिला है, जिसे “बैल का कूबड़” भी कहा जाता है। यह जिला इंद्रावती नदी के दक्षिण में स्थित है और उत्तर-दक्षिण की ओर बहता है| बीजापुर जिला जंगलो से समृद्ध है| जिले में पाए जाने वाले जंगल, शुष्क क्षेत्र के अंतर्गत आते है जिसमें मिश्रित वन क्षेत्र शामिल है। शुष्क क्षेत्र में मिश्रित जंगल बहुत व्यापक हैं जो नम और मध्यवर्ती बेल्ट के बीच फैले हुए है लेकिन आमतौर पर जिले के पश्चिमी आधे और दक्षिणी हिस्सों तक ही सीमित होते है। यहां मिश्रित विविधता के पेड़ पाए जाते हैं धवरा (एनोजीसस लैटिफ़ोलिया), बिर्रा (क्लोरोक्ज़िलोन स्वित्टेनिया), राहीनी (सोयमिडा फबरफुगा) और अन्य जैसे चार, तेंदु, एओनिया, आओला, हर्रा, हरिया आदि|
चट्टानी क्षेत्रों में, पेड़ आमतौर पर अवरुद्ध और विकृत होते हैं। चट्टानी क्षेत्र में सली, हांगु, खैर, हररा, पाल, सेसम आदि आम पेड़ पाए जाते हैं। जिले के उत्तरी भाग के जंगल में साग (टेक्टोना ग्रैंडिस), साल (शोरोरा-बस्टा), सिरसा (डाल्बर्गिया लैटिफ़ोलिया), बिजनल (पेटोकार्पस मार्सूपियम), कुसुम (स्केलिच्रा त्रिजुगा), पाल (बुटिआ फ्रोंडोसा), महुआ (बासिया लतिफोलिया) तेंदु (डायस्पोयस मेलानॉक्सिलोन), हररा (टर्मिनलिया चेब्यूला) आओला (फिलाएंथस इम्ब्लिका) सजा (टर्मिनल टॉन्टोसा), कौहा (टी। अर्जुन), सलाई (बोसवेलिया साराटाटा), चार (बुकानानिया लातिफोलिया) आदि पेड़ पाए जाते हैं।
गांव आबादी के आसपास के क्षेत्र में आम पेड़ पाए जाते हैं जिनके बारे में यहां कोई जिक्र नहीं है। ताड़ का लोगों की घरेलू अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण स्थान है। स्थानीय स्तर पर ताड़ के रूप में जाना जाने वाला खजूर का वृक्ष (बोरसुआ फ्लैबेलिफ़र) दक्षिण-पश्चिम में बड़े पैमाने पर बढ़ता है| ताड़ से यहाँ के लोग ताड़ी निकालते हैं| अगला सबसे महत्वपूर्ण है सल्फी (कैरिएटा युरेंस)| खजूर का वृक्ष (ताड़) के विपरीत, सल्फी एक विस्तृत प्रजाति नहीं है और पहाड़ियों के दबाव में लचिले मैदानों की छायादार घाटियों में बढ़ता है। यह जिले के मध्य क्षेत्रों में सबसे अच्छा पनपती है। सल्फी एक रस पैदा करती है, जिसे सल्फी नाम से ही जाना जाता है और यह एक स्वादिष्ट रस प्रदान करता है। अन्य खजूर के पेड़ है जंगली खजूर(फीनिक्स सिलवेस्टिस) और पी. एकौलिस हैं, जिन्हें स्थानीय रूप से छिंड और बुटा छिन्द (पी. दूरिनिफेरा) कहा जाता है। इस बूटा छिन्द के तने से कोआ प्राप्त होता है जो कि जनजातियों के लिए एक मिष्ठान है।
जिला अपने समृद्ध वन्यजीवों के लिए प्रसिद्ध है क्योंकि यहा जंगलों का बहुत घाना आवरण है। बाघ और तेंदुआ पूरे जंगल में पाए जाते हैं। बाघ और तेंदुआ आदमखोर मे बदल जाने के करण कुख्यात है, जाहिर तौर पर पेड़ों की कमी, जंगल में प्राकृतिक भोजन और मवेशियों की अनुपस्थिति इसका कारण है| निकटतम हवाई अड्डा रायपुर में है और रेलवे स्टेशन दंतेवाड़ा में है। बीजापुर सड़क से, दंतेवाड़ा, रायपुर और विशाखापत्तनम से जुड़ा हुआ है। इसका मुख्यालय बीजापुर में स्थित है, जो कि दंतेवाड़ा जिले से करीब 90 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। नदी इंद्रावती जिले की मुख्य भौगोलिक विशेषता है, यह एक कपटपूर्ण पाठ्यक्रम के साथ दक्षिणी सीमा के पार बहती है।
जिला एक नज़र में |
क्षेत्रफल :
6562.48 sq km |
जनसंख्या :
2,55,230 |
साक्षरता दर : 41.58 % |
विकासखंड : 4 |
गाँव : 699 |
नगरीय निकाय : 1(बीजापुर) |
पोलिस थाना : 21 |
भाषा
: 6 |
सामान्य जानकारी, बीजापुर जिला – जनगणना 2011 और जिला सांख्यिकीय पुस्तिका 2019-20 के अनुसार |
|
सामान्य जानकारी का नाम |
सामान्य जानकारी का विवरण |
जिला गठन तिथि |
01-05-2007 |
स्थान – अक्षांश |
18.8608°
उ |
स्थान – रेखांश |
80.7214°
पू |
भाषा |
6 (गोंडी, तेलगु, डोरली, हिंदी, मराठी, हल्बी) |
सांसद निर्वाचन क्षेत्र |
10 बस्तर (एसटी) |
विधायक निर्वाचन क्षेत्र |
89 बीजापुर (एसटी) |
कुल क्षेत्र |
6562.48 वर्ग किमी |
राजस्व गाँव/कुल गाँव |
584/699 गाँव |
निवासित गांव |
581 गाँव |
निर्वासित गांव |
104 गाँव |
वन गाँव |
08 गाँव |
कुल जनसंख्या |
2,55,230 |
साक्षरता दर |
40.90% |
जिला अस्पताल |
1 (बीजापुर) |
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र |
5 (बीजापुर (गंगालूर), भैरमगढ़, भोपालपटनम, उसुर, नेलासनार) |
कर्नाटक स्थित बीजापुर, राज्य का एक प्राचीन शहर है, जो विजयपुर के नाम से भी संबोधित किया जाता है। यह शहर अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए काफी ज्यादा प्रसिद्ध है, जहां आप अतीत से जुड़ी कई संरचनाओं को देख सकते हैं, जिनमें महल, किला, मंदिर, मस्जिद, विशाल प्रवेशद्वार आदि शामिल हैं। दक्षिण भारत के अतीत से जुड़े कई अहम पहलुओं को इस शहर के माध्यम से समझा जा सकता है। पांच नदियों और विभिन्न संस्कृतियों वाले इस धरोहर स्थल का इतिहास कई सौ साल पुराना है, माना जाता इसे 10वीं से 11वीं शताब्दी के दौरान कल्याणी के चालुक्यों ने बसाया था। उस समय यह विजयपुर के नाम से जाना जाता था, यानी जीत का शहर। यह प्राचीन शहर चालुक्य के बाद यादव, दिल्ली सल्तनत के हाथों से गुजरता हुआ बहमनी के सुल्तान के अंतर्गत आ गया था। इसी दौरान यह शहर बीजापुर के नाम से विख्यात हुआ।
बहमनी के बाद यहां कई और शक्तिशाली साम्राज्यों ने शासन किया है। इस लेख
में आज हम आपको बीजापुर के प्राचीन संग्रह में से एक किले के बारे में बताएंगे, जिसका
नाम शहर के नाम पर ही पड़ा है, बीजापुर फोर्ट। जानिए पर्यटन के लिहाज से यह किला आपको
किस प्रकार आनंदित कर सकता है।
बीजापुर का किला
बीजापुर का किला, बीजापुर की महत्वपूर्ण प्राचीन संरचानाओं में से एक है, जो यहां सबसे
ज्यादा देखे जाने वाले स्थलों में गिना जाता है। बीजापुर किला, आदिल शाही राजवंश के
शासन के दौरान बनाया गया था, जो उस दौरान बनाई गईं ऐतिहासिक स्मारकों की उत्कृष्ट वास्तुकला
शैली को प्रदर्शित करता है। बीजापुर में लगभग 200 वर्षों तक शासन करने वाले आदिल शाही
सुल्तानों ने वास्तुकला का काफी विस्तार किया था। कहा जा सकता है कि प्रत्येक सुल्तानों
ने इमारत बनवाने के मामले में अपने पूर्ववर्तियों से ज्यादा बढ़कर काम करने का प्रयास
किया। बीजापुर और आसपास मौजूद खूबसूरत प्राचीन संरचनाओ की वजह से इस शहर को दक्षिण
का आगरा भी कहा जाता है।
संक्षिप्त इतिहास
बीजापुर फोर्ट, दुर्ग और अन्य संरनाएं मिलकर बीजापुर शहर के इतिहास का निर्माण करती
है, जिसे 10वीं-11वीं के दौरान बसाया गया था। प्राचीन समय के दौरान यह प्राचीन स्थल
विजयपुर के नाम से प्रसिद्ध था। बाद से इसका नाम बदलकर बीजापुर रख दिया गया। बीजापुर
का किला यहां घटने वाली हर छोटी-बड़ी घटनाओं का प्रत्यक्षदर्शी रहा है, इसने यहां की
राजवंशों को बसते और उजड़ते देखा है। शहर के इतिहास में यह एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा
करता है। माना जाता है कि मुराद द्वितीय के बेट युशुफ आदिल शाह ने 1481 में सुल्तान
मुहम्मद तृतीय के अंतर्गत सल्तनत के बीदर कोर्ट से जुड़े थे। वे महमूद गवन के द्वारा
एक गुलाम के रूप में खरिदे गए थे। लेकिन बाद में उनके साहस और वफादारी की वजह से उन्हें
बीजापुर का गवर्नर नियुक्त कर दिया गया था। उन्हीं ने अपने समय में इस किले का निर्माण
करवाया था।
वास्तुकला
माना जाता है कि आदिल शाह का कला और वास्तुकला में बहुत ज्यादा दिलचस्पी थी, इसलिए
उन्होंने यहां बीजापुर फोर्ट, महल, मकबरा, उद्यान आदि का निर्माण करवाया। यहां आदिल
शाह द्वारा बनवाए गए कई प्राचीन मंदिरों के अवशेषों को यहां देखा जा सकता है। इस किले
का निर्माण आकर्षक वास्तुकला शैली में मजबूत दीवारों के साथ बनवाया गया था, ताकि युद्ध
के समय दुश्मन इस किले को ज्यादा छतिग्रस्त न कर सकें। किले का आंतरिक भाग काफी बड़ा
है, जिसके अंदर की प्राचीन संरचनाएं मौजूद हैं। सुरक्षा के लिए किले की दीवारों में
कई तरह के इंतजाम किए गए थे। दीवारों में तोपों के लिए अलग जगहें भी बनवाईं गई थीं।
किल के पांच मुख्य द्वार (मक्का गेट, साहपुर गेट, बहमनी गेट, अलाहपुर गेट, फतेह गेट)
हैं, जो देखने में काफी आकर्षक नजर आते हैं।
आकर्षण
बीजापुर किले के अलावा आप यहां की अन्य खूबसूरत प्राचीन संरचनाओं को भी देख सकते हैं।
आप यहां खूबसूरत जामिया मस्जिद देख सकते हैं, जो जुम्मा मस्जिद के नाम से भी जानी जाती
है। इस प्राचीन सरंचना का निर्माण 1565 में किया गया था, पर यह पूरी तरह बन नहीं पाई
थी। आप यहां इब्राहिम रौजा मकबरा देख सकते हैं, जिसे अली रौजा के नाम से भी जाना जाता
है। यह इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय और उनकी रानी ताज सुल्ताना का मकबरा है। इसके अलावा
आप यहां मेहतर महल, मलिक-ए-मैदान, गगन महल, सात मंजिल, असर महल, ताज बावड़ी, गोल गुंबज,
संगीत नारी महल आदि संरचनाओं को भी देख सकते हैं।
कैसे करें प्रवेश
बीजापुर, कर्नाटक का एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक शहर है, जहां आप परिवहन के तीनों साधनों
की मदद से पहुंच सकते हैं, यहां का निकटवर्ती हवाईअड्डा बेलगाम एयरपोर्ट है, रेल मार्ग
के लिए आप बीजापुर रेलवे स्टेशन का सहारा ले सकते हैं। अगर आप चाहें तो यहां सड़क मार्गों
के द्वारा भी पहुंच सकते हैं, बेहतर सड़क मार्गों से बीजापुर राज्य के बड़े शहरों से
अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
बीजापुर कर्नाटक प्रान्त का एक शहर है। यह आदिलशाही बीजापुर सल्तनत की राजधानी भी रहा है। बहमनी सल्तनत के अन्दर बीजापुर एक प्रान्त था। बंगलौर के उत्तर पश्चिम में स्थित बीजापुर कर्नाटक का प्राचीन नगर है।
इतिहास
दक्षिण भारतीय वास्तुकला शैली में निर्मित यहां के स्मारक शहर के मुख्य आकर्षण हैं। दक्षिण भारत में पांच हिन्दू शासन के पतन के कारण बीजापुर समेत पांच राज्यों का उदय हुआ। 1489 से 1686 तक यह नगर आदिलशाही वंश की राजधानी थी। शहर की अनेक मस्जिद, मकबर, महल और किले पर्यटकों को खासे आकर्षित करते हैं। यहां का गुम्बद विश्व का दूसरा सबसे विशाल गुम्बद है। कर्नाटक की कला और संस्कृति में बीजापुर का विशेष योगदान रहा है।
मुख्य आकर्षण
आदिलशाही वंश के सातवें शासक मुहम्मद आदिल शाह का यह मकबरा बीजापुर का मुख्य आकर्षण है। विश्व के इस दूसरे सबसे विशाल गुम्बद का व्यास 44 मीटर और ऊँचाई 51 मीटर है। इस विशाल गुम्बद के बनने में बीस वर्ष का समय लगा था। इस मकबरे का सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि इसमें सहारे के लिए एक भी कॉलम नहीं है।
जुम्मा मस्जिद
इस मस्जिद को बीजापुर की सबसे विशाल और भारत प्रथम मस्जिद कहा जाता है। इसका निर्माण आदिल शाह के काल में 1557 से 1686 के बीच हुआ था। मस्जिद का कुल क्षेत्रफल 10810 वर्ग मीटर है जिसमें 9 विशाल तोरण शामिल हैं। मस्जिद में सोने से लिखी पवित्र कुरान की एक प्रति रखी हुई है।
इब्राहिम रोजा
शहर के पश्चिमी छोर पर बना इब्राहिम रोजा एक खूबसूरत मकबरा है। इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय के इस मकबरे से ताजमहल बनाने की प्रेरणा ली गई थी। इसकी दीवारों को काफी सुंदर तरीके से सजाया गया है। साथ ही इसकी पत्थर की खिड़कियां भी बहुत आकर्षक हैं। इस स्मारक ईरान के शिल्पकारों ने बनाया था। इसके समीप ही एक मस्जिद भी है।
मलिक-ए-मैदान
यह मध्यकाल में विश्व की सबसे बड़ी तोप थी। यह तोप 14 फीट लंबी और इसका वजन 55 टन है। एक चबूतरे पर रखी इस तोप का नोजल सिंह के सिर के आकार का है। इस तोप का वार ट्रॉफी के रूप में 1549 में बीजापुर लाया गया था। कहा जाता है इसे छूकर किसी चीज की कामना करने पर वह प्राप्त होती है।
बीजापुर किला
16 वीं शताब्दी का यह किला बीजापुर आने वाले सैलानियों को अपनी लोकेशन के कारण काफी आकर्षित करता है। यह किला वन्य जीव अभयारण्य के समीप है, जहां तेन्दुए, जंगली सूकर, नीलगाय और हिरन विचरण करते रहते हैं। महाराज प्रताप सिंह के छोटे भाई राव शक्ति सिंह द्वारा बनवाए गए इस किले को अब हेरिटेज होटल में तब्दील कर दिया गया है।
गगन महल
यह भवन अली आदिल शाह प्रथम ने 1561 में बनवाया था। इस महल को कुछ समय तक शाही महल के रूप में इस्तेमाल किया गया। इस महल में तीन शानदार मेहराब हैं। बीच की मेहराब सबसे चौडी है। इसका भूमितल दरबार हॉल था और प्रथम तल शाही परिवार का निवास स्थान था।
आनंद महल
इस महल को आदिल शाह द्वितीय ने 1589 में बनवाया था। दो मंजिल का यह महल कभी राजकीय परिवार की महिलाओं का गृह था। वर्तमान में यह महल जिमखाना क्लब, इंस्पेक्शन बंगला, कुछ अन्य कार्यालय और सहायक कमिश्नर के क्वार्टर के रूप में तब्दील हो चुका है।
असर महल
किले के पूर्व में स्थित इस महल को मोहम्मद आदिल शाह ने लगभग 1646 ई में न्याय के दरबार के रूप में बनवाया था। महल के ऊपरी खंड को अनेक भित्तिचित्रों से सजाया गया है। इन भित्तिचित्रों में फूल, पत्तियों के अलावा महिलाओं और पुरूषों को अनेक मुद्राओं में दर्शाया गया है। महल के सामने एक वर्गाकार टैंक है।
आवागमन
वायु मार्ग
बीजापुर का निकटतम एयरपोर्ट बेलगांम में है जो 205 किलोमीटर की दूरी पर है। मुम्बई और बैंगलोर से यहां के लिए नियमित फ्लाइटें हैं।
रेल मार्ग
बीजापुर रेल के माध्यम से बैंगलोर, मुम्बई, होस्पेट और वास्कोडिगामा से जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग
कर्नाटक राज्य सड़क परिवहन निगम की बसें नियमित रूप से बदामी, बैंगलोर, बेलगाम, हुबली और शोलापुर से बीजापुर के लिए चलती हैं। बीजापुर सड़क मार्ग से कर्नाटक और आसपास के शहरों से जुड़ा है।
बीजापुर सल्तनत
बीजापुर सल्तनत या आदिलशाही सल्तनत (1490-1686) दक्कन का एक राज्य था। यह बहमनी सल्तनत का एक प्रांत था जिसका सूबेदार युसूफ़ आदिलशाह था जिसने बीजापुर को 1490 में स्वतंत्र घोषित कर दिया। उसने इसके साथ ही आदिलशाही वंश की स्थापना भी की। 1686 में औरंगजेब ने इसको मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया।
प्रमुख शासक
1. इब्राहिम आदिल शाह
आदिलशाह वंश का महत्वपूर्ण शासक था, जो जगत गुरु व अबला बाबा के रूप में प्रसिद्ध है । इसने कुछ इमारतों का निर्माण करवाया जिसे "संयुक्त इब्राहिम का रोजा" कहा जाता है । इसने किताब-ए-नौरस/नवरस नामक पुस्तक लिखी । इसने नौरस नामक नगर बसाया ।
2. मुहम्मद आदिल शाह
इसने गोल गुम्बज का निर्माण करवाया, जो भारत का सबसे बड़ा गुम्बज है ।
बीजापुर किला का इतिहास, बीजापुर, भारत
बीजापुर किला (Bijapur Fort), यूसुफ आदिल शाह द्वारा बनाया गया था, जो आदिल शाही वंश के थे, जिन्होंने लगभग 200 वर्षों तक बीजापुर पर शासन किया था. इस काल में शहर के अंदर किले के अलावा और भी कई स्मारक बनाए गए. आदिल शाही वंश से पहले, बीजापुर पर कल्याणी चालुक्यों का शासन था और उनके काल में, शहर को विजयपुरा के नाम से जाना जाने लगा. बीजापुर किला (Bijapur Fort) को देखने भारत और विदेश से भी लाखों पर्यटक भारत बीजापुर आते हैं.
यह पोस्ट बीजापुर किला का इतिहास, बीजापुर, भारत (History of
Bijapur Fort, Bijapur, India) आपको इस किले के इतिहास के साथ-साथ इसके अंदर मौजूद संरचनाओं के बारे में भी विस्तार से जानकारी देगा और अगर आपको और स्मारक (Monuments) के बारे में पढना अच्छा लगता है तो आप यहाँ पढ़ सकते
हैं.
बीजापुर किला का इतिहास (History of Bijapur Fort)
बीजापुर शहर पर सबसे पहले 10 वीं और 11 वीं शताब्दी के दौरान कल्याणी चालुक्यों का शासन था और इस शहर को विजयपुरा के नाम से जाना जाता था. 13 वीं शताब्दी में, खिलजी वंश के राजाओं ने शहर पर शासन किया था. गुलबर्गा के बहमनी सल्तनत के शासकों ने 1347 AD में इस शहर पर कब्जा कर लिया और शहर का नाम बदलकर बीजापुर कर दिया गया.
यूसुफ आदिल शाह के अधीन बीजापुर का किला
यूसुफ आदिल शाह तुर्की के सुल्तान के पुत्र थे और उन्हें बीदर के प्रधान मंत्री महमूद गवन ने खरीदा था. उस समय बीदर पर सुल्तान मुहम्मद III का शासन था. युसुफ ने सल्तनत की रक्षा के लिए बहादुरी और निष्ठा दिखाई और इसलिए उन्हें बीजापुर का सूबेदार बना दिया गया.
युसुफ ने अर्किला किला या बीजापुर किला और फारूख महल का निर्माण कराया, जिसके डिजाइनर फारस, तुर्की और रोम से लाए गए थे. बाद में बहमनी साम्राज्य को पांच छोटे राज्यों में विभाजित किया गया और बीजापुर उनमें से एक था. अवसर की तलाश में, यूसुफ ने खुद को बीजापुर का शासक घोषित किया और आदिल शाही वंश की स्थापना की.
इब्राहिम आदिल शाह के अधीन बीजापुर का किला
इब्राहिम आदिल शाह 1510 में यूसुफ आदिल शाह के उत्तराधिकारी बने. इब्राहिम एक नाबालिग था जब उसके पिता की मृत्यु हो गई, इसलिए उसकी मां ने राज्य पर शासन किया और उन दुश्मनों से लड़ा जो बीजापुर पर कब्जा करना चाहते थे. इब्राहिम ने किले के भीतर जामी मस्जिद का निर्माण कराया.
अली आदिल शाह प्रथम के अधीन बीजापुर का किला
अली आदिल शाह प्रथम ने इब्राहिम आदिल शाह का स्थान लिया. उन्होंने गगन महल और चांद बावड़ी के साथ अली रौजा नामक अपनी कब्र का निर्माण किया. अली के भी कोई पुत्र नहीं था इसलिए उसका भतीजा इब्राहिम द्वितीय सफल हुआ. चूंकि इब्राहिम नाबालिग था इसलिए राज्य की रक्षा चांद बीबी ने की थी.
इब्राहिम II के तहत बीजापुर का किला
इब्राहिम द्वितीय एक अच्छा शासक था जिसने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच और शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच सामंजस्य स्थापित किया. यही कारण है कि राजा को जगद्गुरु बादशाह के नाम से जाना जाने लगा. राजा ने कई मंदिर बनवाए और वह गोल गुंबज के निर्माता भी थे. उनके शासनकाल में एक बंदूक विकसित की गई थी जिसकी लंबाई 4.45 मीटर है. उनके जीवन के अंतिम दिनों में उनकी पत्नी बारीबा ने राज्य पर शासन किया.
आदिल शाह द्वितीय तहत बीजापुर का किला
आदिल शाह द्वितीय इब्राहिम द्वितीय का दत्तक पुत्र और उत्तराधिकारी था. आंतरिक रूप से उत्तराधिकार की समस्या के कारण, राज्य कमजोर हो गया था. इसके कारण मराठा शासक शिवाजी द्वारा अफजल खान की हार हुई, जिन्होंने शहर को 11 बार लूटा. शिवाजी ने कर्नाटक पर कब्जा रोकने के लिए एक संधि पर हस्ताक्षर किए. उनकी मृत्यु के बाद, औरंगजेब ने 1686 में बीजापुर पर हमला किया और कब्जा कर लिया.
बीजापुर किला का वास्तुकला (Architecture of Bijapur Fort)
यह किला एक बहुत बड़ा किला है जिसके अंदर कई संरचनाएं हैं. किले का निर्माण 1565 में आदिल शाही वंश के संस्थापक ने करवाया था. किले के भीतर विभिन्न डिजाइनों के 96 बुर्ज हैं. गढ़ों में पत्थर या तोप गिराने के लिए जगह दी गई थी. इन स्थानों को क्रेन्यूलेशन (crenulations) और मशीनीकरण (machicolations) के रूप में जाना जाता है. किले के पांच मुख्य द्वार हैं और प्रत्येक में दस गढ़ हैं. किले के चारों ओर एक खाई है जिसे बनाया गया था ताकि दुश्मन किले में प्रवेश न कर सके. खाई की चौड़ाई 50 फीट है.
किले के द्वार
किले में पांच द्वारों से प्रवेश किया जा सकता है जो हर दिशा में स्थित हैं. दिशा के साथ द्वार इस प्रकार हैं –
- पश्चिम में मक्का गेट
- उत्तर पश्चिम में शाहपुर गेट
- उत्तर में बहमनी गेट
- पूर्व में अल्लाहपुर गेट
- दक्षिण पूर्व में फतेह द्वार
जामिया मस्जिद
जामिया मस्जिद किले की दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित है. मस्जिद का निर्माण 1565 में शुरू हुआ था लेकिन पूरा नहीं हो सका. मेहराबदार प्रार्थना कक्ष में नौ खण्डों वाला एक गुंबद वाला गलियारा है. गलियारों को खंभों पर सहारा दिया जाता है. मस्जिद में पानी की टंकी के साथ एक बड़ा आंगन भी है. मस्जिद को जुम्मा मस्जिद के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि हर शुक्रवार को खुतबा या भाषण संबंधी इस्लामी परंपराओं को पढ़ा जाता है.
मस्जिद द्वारा कवर किया गया क्षेत्र 10810 m2 है. आयताकार आकार की मस्जिद का आयाम 170m x 70m है. इनमें नौ मेहराब हैं और उनके भीतर पांच मेहराब हैं जो मस्जिद को 45 डिब्बों में विभाजित करते हैं. 2250 टाइलें हैं जो एक प्रार्थना चटाई के रूप में बिछाई जाती हैं. टाइल्स का निर्माण औरंगजेब ने करवाया था.
इब्राहिम रौज़ा या इब्राहिम मकबरा
इब्राहिम रौज़ा या इब्राहिम मकबरा 1627 में बनाया गया था और इसमें इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय और उनकी पत्नी रानी ताज सुल्ताना की कब्रें हैं. मकबरा नक्काशी के साथ जुड़वां इमारतों के रूप में बनाया गया है. इस मकबरे के वास्तुकार मलिक संदल को भी यहीं दफनाया गया है. मकबरे के अंदर एक मस्जिद और एक बगीचा है जो एक दूसरे के सामने है.
बगीचे का आकार लगभग 140 मीटर 2है. मकबरे की छत नौ चौराहों में बंटी हुई है, जिसके किनारे घुमावदार हैं. मकबरे के हर कोने पर चार मीनारें हैं. जिस प्लेटफॉर्म पर मकबरा स्थित है, उसके नीचे दी गई सीढ़ियों से पर्यटक मकबरे तक पहुंच सकते हैं. मकबरे की मस्जिद में सागौन की लकड़ी से बने प्रवेश द्वार हैं और इन्हें धातु की पट्टियों से सजाया गया है.
मेहतर महल
मेहतर महल का निर्माण 1620 में किया गया था जिसका द्वार इंडो-सरसेनिक शैली में बनाया गया है. महल के अंदर एक मस्जिद है जिसे मेहतर मस्जिद कहा जाता है जिसमें तीन मंजिल हैं. महल की मीनारों को हंसों और पक्षियों की पंक्तियों से उकेरा गया है. महल में सपाट छत है और मीनारों में गोल शीर्ष हैं.
बाराकमन
बाराकमन को 1672 में अली रोजा के मकबरे के रूप में बनवाया गया था. पहले, संरचना को अली रोजा के नाम से जाना जाता था, लेकिन बाद में शाह नवाब खान ने इसका नाम बदलकर बाराकमन कर दिया. बाराकमन में 12 मेहराब हैं और इसे शाह नवाब खान के शासनकाल के दौरान बनाया गया था. संरचना एक उठाए गए मंच पर बनाई गई थी और 66 मीटर 2के क्षेत्र को कवर करती है. मेहराबों का निर्माण काले बेसाल्टिक पत्थर से किया गया था. अली रोजा, उनकी रानियों और कुछ अन्य महिलाओं को कब्र में दफनाया गया है.
मलिक-ए-मैदान
तालिकोटा की लड़ाई के बाद इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय द्वारा मलिक-ए-मैदान का निर्माण किया गया था. संरचना को बुर्ज-ए-शेर्ज़ के नाम से भी जाना जाता है. इसमें एक बड़ी तोप है जिसकी लंबाई 4.45 मीटर और व्यास 1.5 मीटर है. तोप का वजन 55 टन है. बंदूक गर्मी के दिनों में भी ठंडी रहती है और टैप करने पर आवाज पैदा करती है.
गगन महल
सत मंजिल या सात मंजिला
सत मंजिल एक सात मंजिला महल था जिसे इब्राहिम आदिल शाह द्वितीय ने 1583 में बनवाया था. वर्तमान में केवल पांच मंजिलें हैं.
असर महल
असर महल गढ़ के पूर्व में पाया जा सकता है और 1646 में बनाया गया था. महल एक पुल के माध्यम से किले से जुड़ा हुआ है. इसे दरबार के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता था इसलिए इसे डैड महल कहा जाता था. इसे एक तीर्थस्थल भी माना जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इसमें पैगंबर मुहम्मद के दो बाल हैं. लकड़ी के पैनल वाले छत के साथ चार अष्टकोणीय स्तंभ हैं. महिलाओं को इस महल में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है.
ताज बावड़ी
ताज बावड़ी, ताज सुल्ताना की याद में बनवाया गया था जो इब्राहिम आदिल शाह की पहली पत्नी थीं. बावड़ी में अष्टकोणीय मीनारें हैं जिनके पूर्व और पश्चिम पंखों का उपयोग विश्राम गृह के रूप में किया जाता था.
Conclusion
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Bijapur Fort, Bijapur, India) हिंदी में“ अच्छा लगा होगा. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और हमें आप What’sUp, Blog’s, Linkedin, Instagram,
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