गीता प्रेस


गीता प्रेस

पिछले दिनों गुजरात का एक युवक गोरखपुर स्थित गीता प्रेस के प्रबंधक के पास पहुंचा. चेकबुक निकालते हुए उसने कहा कि दिवंगत पिता की अंतिम इच्छा के अनुरूप वह एक करोड़ रु. से ज्यादा की राशि चंदे में देना चाहता है.

लेकिन प्रेस के लोगों ने चंदा लेने से साफ मना कर दिया. वजहः प्रेस चलाने के लिए चवन्नी की भी बाहरी मदद लेना इसकी नीति रही है.

बात 1920 के दशक की है. कलकत्ता (अब कोलकाता) के एक मारवाड़ी सेठ जयदयाल गोयंदका रोज गीता पढ़ते थे. अठारहवें अध्याय में गीता सार के रूप में लिखी यह बात उनके दिल को छू गई कि -जो इस परम रहस्ययुक्त गीताशास्त्र को मेरे भक्तों में कहेगा, वह मुझको प्राप्त होगा.” सो वे उसकी व्याख्या भी करने लगे. बाद में लोगों के कहने पर अपनी व्याख्या एक प्रेस से छपवाई लेकिन उसमें भयंकर भूलें देखकर वे दुखी हो गए. यहीं आया खुद के प्रेस का ख्याल. गोरखपुर के अपने एक श्रद्धालु घनश्यामदास जालान के सुझाव पर उसी शहर में दस रु. किराए में एक मकान में शुरू हो गया गीता प्रेस.

इस साल 29 अप्रैल को 92 वर्ष के हो चुके इस प्रकाशन का छपाई का आंकड़ा देखकर सिर चकरा जाए. पिछले साल इसने करीब 5,000 टन कागज पर भगवद्गीता, रामचरित मानस और दूसरे ग्रंथ छापे, जो दूसरे किसी भी बड़े प्रकाशन में कागज की सालाना खपत से बीसियों गुने से भी ज्यादा है.

गोयंदका को धार्मिक मकसद में अपने से भी ज्यादा समर्पण वाले हनुमान प्रसाद पोद्दार मिल गए थे, जो उस समय के एक प्रकांड विद्वान थे और गीता प्रेस के पहले संपादक तथा उसकी मासिक पत्रिका कल्याण के संपादक बने. प्रेस का खर्च गोयंदका की ही कपड़े वगैरह बनाने वाली संस्था गोविंद भवन से मिलता था. आज भी वही व्यवस्था है. इसके परंपरावादी संस्थापकों ने इसकी मूल्य नीति शुरू में ही स्पष्ट कर दीः किताबों की कीमत उनकी लागत से कम रखी जाए. ज्यादा उपयोगी किताबों की कीमत तो नाममात्र की ही रखी जाए. उसी का नतीजा है कि गीता और मानस के कई संस्करण आज भी 10-100 रु. के भीतर मिल जाएंगे. शंकराचार्य की टीका वाला कठोपनिषद् एक मिस्सी रोटी (20 रु.) के दाम में उपलब्ध है. और चाय से भी आधी कीमत (2 रु.) में मिलने वाले हनुमान चालीसा की हर साल यहां से 50 लाख प्रतियां बिकती हैं. छपाई पूरी तरह निर्दोष हो, इसके लिए गलतियां पकड़ने पर पाठकों को इनाम देने की योजनाएं चलाई गईं.

गोयंदका के रहते ही यह भी तय हो चुका था कि प्रेस के लिए किसी से चवन्नी का भी चंदा नहीं लिया जाएगा. साथ ही प्रेस का पैसा प्रेस में ही लगेगा. विभिन्न भाषाओं की 300 से ज्यादा दुर्लभ पांडुलिपियां मौजूद हैं, जिन्हें एक अपील पर लोगों ने इस उम्मीद से गीता प्रेस के पास भेज दिया कि यहां वे ज्यादा महफूज रहेंगी...

पोद्दार जी ने भारत बंटवारे के समय गीता प्रेस से निकलने वाली पत्रिका के माध्यम से जबरदस्त विरोध किया था..

गांधी जी के साथ रही दोस्ती भी धीरे धीरे ख़त्म हो गयी..

ऐसे ही नेहरु को तो पोद्दार जी विधर्मी ही मानते थे.. पोद्दार जी को भारत रत्न देने की पेशकश भी उस समय के गृहमंत्री की तरफ से किया गया था.. पर उन्होंने वो भी लेने से इनकार कर दिया था.

¤हरि: ¤ जय महाकाल.!!!

अतिरिक्त जानकारी गीता प्रेस के बारे में

गीताप्रेस या गीता मुद्रणालय, विश्व की सर्वाधिक हिन्दू धार्मिक पुस्तकें प्रकाशित करने वाली संस्था है। यह पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर के शेखपुर इलाके की एक इमारत में धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन और मुद्रण का काम कर रही है। इसमें लगभग २०० कर्मचारी काम करते हैं। यह एक विशुद्ध आध्यात्मिक संस्था है। देश-दुनिया में हिंदी, संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाओं में प्रकाशित धार्मिक पुस्तकों, ग्रंथों और पत्र-पत्रिकाओं की बिक्री कर रही गीताप्रेस को भारत में घर-घर में रामचरितमानस और भगवद्गीता को पहुंचाने का श्रेय जाता है। गीता प्रेस की पुस्तकों की बिक्री 18 निजी थोक दुकानों के अलावा हजारों पुस्तक विक्रेताओं और ४२ प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर बने गीता प्रेस के बुक स्टॉलों के जरिए की जाती है। गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा कल्याण (हिन्दी मासिक) और कल्याण-कल्पतरु (इंग्लिश मासिक) का प्रकाशन भी होता है।

स्थापना एवं परिचय

गीताप्रेस की स्थापना सन् 1923 ई० में हुई थी। इसके संस्थापक महान गीता-मर्मज्ञ श्री जयदयाल गोयन्दका थे। इस सुदीर्घ अन्तरालमें यह संस्था सद्भावों एवं सत्-साहित्य का उत्तरोत्तर प्रचार-प्रसार करते हुए भगवत्कृपा से निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर है। आज केवल समूचे भारत में अपितु विदेशों में भी यह अपना स्थान बनाये हुए है। गीताप्रेस ने निःस्वार्थ सेवा-भाव, कर्तव्य-बोध, दायित्व-निर्वाह, प्रभुनिष्ठा, प्राणिमात्र के कल्याण की भावना और आत्मोद्धार की जो सीख दी है, वह सभी के लिये अनुकरणीय आदर्श बना हुआ है।

करीब 90 साल पहले यानी 1923 में स्थापित गीता प्रेस द्वारा अब तक 45.45 करोड़ से भी अधिक प्रतियों का प्रकाशन किया जा चुका है। इनमें 8.10 करोड़ भगवद्गीता और 7.5 करोड़ रामचरित मानस की प्रतियाँ हैं। गीता प्रेस में प्रकाशित महिला और बालोपयोगी साहित्य की 10.30 करोड़ प्रतियों पुस्तकों की बिक्री हो चुकी है।

गीता प्रेस ने 2008-09 में 32 करोड़ रुपये मूल्य की किताबों की बिक्री की। यह आँकड़ा इससे पिछले साल की तुलना में 2.5 करोड़ रुपये ज्यादा है। बीते वित्तवर्ष में गीता प्रेस ने पुस्तकों की छपाई के लिए 4,500 टन कागज का इस्तेमाल किया।

गीता प्रेस की लोकप्रिय पत्रिका कल्याण की हर माह 2.30 लाख प्रतियां बिकती हैं। बिक्री के पहले बताए गए आंकड़ों में कल्याण की बिक्री शामिल नहीं है। गीता प्रेस की पुस्तकों की माँग इतनी ज्यादा है कि यह प्रकाशन हाउस मांग पूरी नहीं कर पा रहा है। औद्योगिक रूप से पिछडे¸ पूर्वी उत्तर प्रदेश के इस प्रकाशन गृह से हर साल 1.75 करोड़ से ज्यादा पुस्तकें देश-विदेश में बिकती हैं।

गीता प्रेस के प्रोडक्शन मैनेजर लालमणि तिवारी कहते हैं, हम हर रोज 50,000 से ज्यादा किताबें बेचते हैं। दुनिया में किसी भी पब्लिशिंग हाउस की इतनी पुस्तकें नहीं बिकती हैं। धार्मिक किताबों में आज की तारीख में सबसे ज्यादा माँग रामचरित मानस की है। गोयन्दका ने कहा कि हमारे कुल कारोबार में 35 फीसदी योगदान रामचरित मानस का है। इसके बाद 20 से 25 प्रतिशत का योगदान भगवद्गीता की बिक्री का है।

गीता प्रेस की पुस्तकों की लोकप्रियता की वजह यह है कि हमारी पुस्तकें काफी सस्ती हैं। साथ ही इनकी प्रिटिंग काफी साफसुथरी होती है और फोंट का आकार भी बड़ा होता है। गीताप्रेस का उद्देश्य मुनाफा कमाना नहीं है। यहाँ सद्प्रचार के लिए पुस्तकें छपती हैं। गीता प्रेस की पुस्तकों में हनुमान चालीसा, दुर्गा चालीसा और शिव चालीसा की कीमत एक रुपये से शुरू होती है।

गीता प्रेस के कुल प्रकाशनों की संख्या 1,600 है। इनमें से 780 प्रकाशन हिन्दी और संस्कृत में हैं। शेष प्रकाशन गुजराती, मराठी, तेलुगू, बांग्ला, उड़िया, तमिल, कन्नड़, अंग्रेजी और अन्य भारतीय भाषाओं में हैं। रामचरित मानस का प्रकाशन नेपाली भाषा में भी किया जाता है।

तमाम प्रकाशनों के बावजूद गीता प्रेस की मासिक पत्रिका कल्याण की लोकप्रियता कुछ अलग ही है। माना जाता है कि रामायण के अखंड पाठ की शुरुआत कल्याण के विशेषांक में इसके बारे में छपने के बाद ही हुई थी। कल्याण की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि शुरुआती अंक में इसकी 1,600 प्रतियाँ छापी गयी थीं, जो आज बढ़कर 2.30 लाख पर पहुँच गयी हैं। गरुड़, कूर्म, वामन और विष्णु आदि पुराणों का पहली बार हिन्दी अनुवाद कल्याण में ही प्रकाशित हुआ था। योगी आदित्यनाथ गीतापुर प्रेस के संरक्षक हैं|

मुख्य प्रकाशन

गीताप्रेसद्वारा मुख्य रूपसे हिन्दी तथा संस्कृतभाषामें गीताप्रेसका साहित्य प्रकाशित होता है, किन्तु अहिन्दीभाषी लोगोंकी असुविधाको देखते हुए अब तमिल, तेलुगु, मराठी, कन्नड़, बँगला, गुजराती तथा ओड़िआ आदि प्रान्तीय भाषाओंमें भी पुस्तकें प्रकाशित की जा रही हैं और इस योजनासे लोगोंको लाभ भी हुआ है। अंग्रेजी भाषामें भी कुछ पुस्तकें प्रकाशित होती हैं। अब केवल भारतमें अपितु विदेशोंमें भी यहाँका प्रकाशन बड़े मनोयोग एवं श्रद्धासे पढ़ा जाता है। प्रवासी भारतीय भी गीता प्रेस का साहित्य पढ़नेके लिये उत्कण्ठित रहते हैं।

विषय

कुल बिकी प्रतियाँ

श्रीमद्भगवद्गीता

7.19 करोड़

श्रीरामचरितमानस एवं तुलसी-साहित्य

7.00 करोड़

पुराण, उपनिषद् आदि ग्रन्थ

1.90 करोड़

स्त्री एवं बालकोपयोगी साहित्य

9.48 करोड़

भक्त चरित्र एवं भजनमाला

6.51 करोड़

गीता प्रेस की कुछ विशेषताएं

गीताप्रेस की कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

·                     गीता प्रेस सरकार या किसी भी अन्य व्यक्ति या संस्था से किसी तरह का कोई अनुदान नहीं लेता है।

·        गीता प्रेस में प्रतिदिन 50 हजार से अधिक पुस्तकें छपती हैं।

·        92 वर्ष के इतिहास में मार्च, 2014 तक गीता प्रेस से 58 करोड़, 25 लाख पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें गीता 11 करोड़, 42 लाख। रामायण 9 करोड़, 22 लाख। पुराण, उपनिषद् आदि 2 करोड़, 27 लाख। बालकों और महिलाओं से सम्बंधित पुस्तकें 10 करोड़, 55 लाख। भक्त चरित्र और भजन सम्बंधी 12 करोड़, 44 लाख और अन्य 12 करोड़, 35 लाख।

·        मूल गीता तथा उसकी टीकाओं की 100 से अधिक पुस्तकों की 11 करोड़, 50 लाख से भी अधिक प्रतियां प्रकाशित हुई हैं। इनमें से कई पुस्तकों के 80-80 संस्करण छपेे हैं।

·        यहां कुल 15 भाषाओं (हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम, गुजराती, मराठी, बंगला, उडि़या, असमिया, गुरुमुखी, नेपाली और उर्दू) में पुस्तकें प्रकाशित होेती हैं।

·        यहां की पुस्तकें लागत से 40 से 90 प्रतिशत कम दाम पर बेची जाती हैं।

·        पूरे देश में 42 रेलवे स्टेशनों पर स्टॉल और 20 शाखाएं हैं।

·        गीता प्रेस अपनी पुस्तकों में किसी भी जीवित व्यक्ति का चित्र नहीं छापती है और ही कोई विज्ञापन प्रकाशित होता है।

·        गीता प्रेस से प्रकाशित मासिक पत्रिका 'कल्याण' की इस समय 2 लाख, 15 हजार प्रतियां छपती हैं। वर्ष का पहला अंक किसी विषय का विशेषांक होता है।

·        गीता प्रेस का संचालन कोलकाता स्थित 'गोबिन्द भवन' करता है।

सम्बन्धित संस्थाएं

गीताप्रेस, गोविन्द भवन कार्यालयकोलकाता का भाग है।

अन्य सम्बन्धित संस्थान हैं:

·                     गीता भवनऋषिकेश

·                     ऋषिकुल्-ब्रह्मचर्य आश्रम् (वैदिक विद्यालय), चुरू, राजस्थान

·        आयुर्वेद संस्थान, ऋषिकेश

·        गीताप्रेस सेवा दल (प्राकृतिक आपदाओं के समय सहायता करने के लिये)

·        हस्त-निर्मित वस्त्र विभाग


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