श्री कृष्णा ने दिया राधा रानी को श्राप, भविष्य में कभी नहीं होगी संतान


 श्री कृष्णा ने दिया राधा रानी को श्राप, भविष्य में कभी नहीं होगी संतान

श्री का अर्थ है शक्ति अर्थात राधा जी कृष्ण यदि शब्द है तो राधा अर्थ है! कृष्ण गीता है तो राधा संगीत है, कृष्ण समुन्द्र है तो राधा तरंग है, कृष्णा पुष्प है तो राधा पुष्प की सुंगध है! राधा जी कृष्णा जी की ह्लादिनी शक्ति है! वह दोनों एक दूसरे से अलग है ही नहीं! ठीक वैसे जैसे शिव और हरी एक ही है! भक्तों के लिए वे अलग अलग रूप धारण करते है, अलग अलग लीलाएं करते है! 

राधा एक आध्यत्मिक पृष्ठ है जहा द्वैत अद्वैत का मिलान है! राधा एक सम्पूर्ण कल का उद्गम है जो कृष्ण रूपी समुन्द्र से मिलती है! श्री कृष्ण के जीवन में राधा प्रेम की मूर्ति बनकर आई! जिस प्रेम को कोई नाप नहीं सका, उसकी आधारशिला राधा जी ने ही रखी थी! संपुराड ब्रह्मांड की आत्मा भगवान कृष्ण है और कृष्ण की आत्मा राधा है! आत्मा को देखा है किसी ने तो राधा को कैसे देख लेगा! राधा रहस्य थी और रहेगी! 

सृस्टि से पूर्व दिव्य गो लोक धाम में निरंतर रास-विलास करते-करते एक बार ही श्री राधा जी के मन में एक पुत्र पैदा करने की इच्छा हुई! इच्छा होते ही पुत्र की उत्पति हुई! परम सुंदरी का पुत्र भी परम सुन्दर हुआ!

एक दिन उस पुत्र ने जमाई ली! उस के पंच भूत, आकाश, पाताल, वन, पर्वत, वृक्ष, अहंततव, प्रकर्ति, पुरुष, सभी दिखाई दिए! उसके मुख में ऐसी आलय बलाय देख कर सुकुमारी श्री राधा रानी को बड़ा बुरा लगा! उन्होंने मन ही मन सोचा कैसा विराट बेटा हुआ है? उन्होंने उसे जल में रख दिया! वही बेटा विराट पुरुष हुआ! उसी से समस्त ब्रह्माण्डो की उत्पति हुई! 

राधा रानी का अपने पुत्र के प्रति ऐसा व्यहवार देखकर श्री कृष्णा ने राधा रानी को श्राप दिया, अब भविष्य में तुम्हे कभी संतान होगी ही नहीं!

तभी तो राधा रानी का नाम कृशोदरी पड़ा! जिसका पेट कभी बढ़ता ही नहीं!

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