ॐ का महत्व
मेरे जिम के गुरुजी प्रातः ही एक भजन गाया करते थे, उनके मुख से सुनते सुनते मुझे यह याद हो गया ।जैसा कि मै अनेक बार लिख चुका हुँ कि मुझे इस बात का नशा था कि हर धार्मिक बात को ग़लत सिद्ध कर सकूँ तो मैं लग गया इस काम में कि ॐ में koi शक्ति नहीं है और यह बेकार का नाटक है ,इसके लिए मैने सरल तरीक़ा अपनाया, हर काम में मैं ॐ, ॐ करता रहता !
फिर एक बार हमारे विद्यालय में एक आर्य समाज के प्रचारक आए उन्होंने योग के साथ साथ ॐ अर्थात प्रणव के उच्चारण का तरीक़ा सिखाया
उनके चरित्र का प्रभाव था या प्रभु कृपा मैं अब तमीज़ से इसका उच्चारण करणे लगा
धीरे धीरे मन शांत होने लगा ! फिर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय फिर गायत्री मंत्र फिर महा मृत्युंजय मंत्र के जाप तक पहुंचा ,चला था ॐ का तिरस्कार करने और बन गया और का प्रचारक
अब ॐ की महिमा का भजन
ओम ही जीवन हमारा, ओम प्राणाधार है,
ओम ही करता विधाता, ओम पालनहार है | (२).
ओम है दुख का विनाशक, ओम सर्वानंद है,
ओम है बल तेज धारी, ओम करुणा नन्द है ||१||
ओम ही जीवन हमारा, ओम प्राणाधार है,
ओम ही करता विधाता, ओम पालनहार है।
ओम सबका पूज्य है हम, ओम का पूजन करें,
ओम के ही ध्यान से हम, शुद्ध अपना मन करें ||२||
ओम ही जीवन हमारा, ओम प्राणाधार है,
ओम ही करता विधाता, ओम पालनहार है।
ओम के गुरुमंत्र जपने, से रहेगा शुद्ध मन,
दिन प्रतिदिन बुद्धि बढ़ेगी, धर्म में होगी लगन ||३||
ओम ही जीवन हमारा, ओम प्राणाधार है,
ओम ही करता विधाता, ओम पालनहार है।
ओम के जप से हमारा, ज्ञान बढ़ता जाएगा,
अन्त में ये ओम हमको, मुक्ति तक पहुंचाएगा ||४||
ओम ही जीवन हमारा, ओम प्राणाधार है,
ओम ही करता विधाता, ओम पालनहार है। (२)...
कालांतर में जबलपुर में मुझे मेरे अष्टांग योग़ गुरु स्वामी विज्ञानानंद जी मिले जिन्होंने विधिबत
आमने समाने बैठ कर योग दर्शन पढ़ाया ( मैं अधिकारी होने के अभिमान से ग्रस्त था और उस तन्मयता से साधना नहीं किया जो करना चाहिए था किंतु मैंने कभी भी साधना में ब्रेक भी नहीं किया ) तो गिरते पड़ते कुछ कुछ न कुछ प्रगति होती गयी ,अब सेवा निवर्ति के समीप हुँ किंतु वृद्धावस्था दूर दूर तक नहीं दिखती है !
तो गुरु मुख से सुनी ॐ की महिमा आपसे साझा करता हूँ ,theory आपको गूगल कर मिल ही जाएगी
ॐ ब्रह्मांड में होने वाली प्राकृतिक ध्वनि है !
साधना करणे पर साधक इसे अपने अंदर सुन सकता है ,
आधुनिक विज्ञान भी इस दिशा में सहमत होता नजर आ रहा है
ॐ का ही मिलता जुलता रूप आमीन है
अनहद नाद ( बिना चोट के होने वाला नाद ) ॐ ही है बाक़ी ढोलक ,तबला ,बांसुरी ,सितार ,मुख से निकली वाणी आदि सभी चोट ( आघात ,आहत ) आदि से होती हैं !
ॐ ,राम ,सोहम आदि मंत्र ही अनहद जाप के योग्य हैं
ओम् का अनहद जाप करने के लिए
साँस लेते वक्त ओं और छोड़ते वक्त मम्म्म्म्म की धारणा की जाती है
यही तरीक़ा
रा और म्म्म्म्म के साथ
तथा
सो और ह्म्म्म्म्म के द्वारा किया जा सकता है
कालांतर में यह ध्वनि अपने अंदर स्वयम् सुनाईं देती है
( मुझे कुछ बार इसका अनुभव हुआ है )
एक बार इसका चस्का लग जाने के बाद मैंने सम्पर्क में आने वाले नवजात शिशुओं को इसे सुनाने का प्रयोग किया ,मैने पाया कि इसे सुनकर वे शांत हो जाते हैं और शीघ्र सो जाते हैं
उनका अकारण रोना भी इसे सुन कर बंद हो जाता है !
जब वे बोलने के योग्य हुए तो मैने सबसे पहले उन्हें यही सिखाया
( एक बालक तो सात माह का होते होते मेरी नक़ल करते हुए ओं का नाद करना सीख गया था )
आप कितने भी अशांत हैं
एक लंबा ॐ का नाद मन को शांत कर देता है
सुबह के अभ्यास में पूरा साँस भर कर
ओं से प्रारम्भ कर साँस ख़त्म होने तक म्म्म्म्म को चलने दें
प्रारंभ में पंद्रह सेकंड से शुरू होता है और धीरे धीरे एक मिनट तक पहुँच जाता है
तीन बार कर लेने से ही मन को अच्छा विश्राम मिल जाता है
ख़ुद से करके देखें
जान जाएँगे
चक्र विज्ञान में ॐ छठे आज्ञाचक्र का बीज मंत्र हैं
आज्ञाचक्र दोनों भोंहों के मध्य बिंदी लगाने के स्थान पर हैं
यह नासिका का प्रारम्भ भी कहलाता है ,अज्ञानी लोग नाक की टिप को उसका आरम्भ समझते हैं किंतु वह उसका अंत है ( हालाँकि वहाँ ध्यान करणे से भी लाभ होता है )
इस स्थान पर ध्यान नेत्र बंद करके फिर अंदर से इस बिंदी के स्थान को देखने से किया जाता है ,साथ ही साँस लेते समय ओं और छोड़ते वक़्त म्म्म्म्म्म की भावना की जाती है
( प्रारम्भ में इसके करणे पर नेत्र थक जाते हैं और सिर दर्द सा महसूस होता है किंतु धीरे अभ्यास हो जाता है थकान होने पर बिंदी के स्थान के बजाय उसी बिंदु को आँख के आगे की ओर देखना चाहिए ,कुछ समय बाद ध्यान अपने आप सही स्थान पर होने लगता है )
आँख खोल कर यह ध्यान करणे से हानि हो सकती है ऐसा संत लोग कहते हैं किंतु न मैने ऐसा करके देखा है न मुझे इसका कोई ज्ञान है ! हाँ बंद नेत्रों से यह अभ्यास करणे पर कोई हानि नहीं है सिर्फ़ लाभ ही लाभ है ,यह मेरा अनुभव है ,
नास्तिक लोग भी इसका अभ्यास करें तो सारी नास्तिकता बह जाएगी !
जो लोग सनातन को झूठ समझते हैं वे अवश्य करके देखें !
🙏
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