कन्याकुमारी
कन्याकुमारी
कन्याकुमारी (Kanyakumari) भारत के तमिल नाडु राज्य के कन्याकुमारी ज़िले में स्थित एक नगर है। यह भारत की मुख्यभूमि का दक्षिणतम नगर है। यहाँ से दक्षिण में हिन्द महासागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी और पश्चिम में अरब सागर है। इनके साथ सटा हुआ तट 71.5 किमी तक विस्तारित है। समुद्र के साथ तिरुवल्लुवर मूर्ति और विवेकानन्द स्मारक शिला खड़े हैं। कन्याकुमारी एक महत्वपूर्ण हिन्दू तीर्थस्थल भी है।
विवरण
(तमिल नाडु में स्थिति)कन्याकुमारी हिन्द महासागर, बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर का संगम स्थल है, जहां भिन्न सागर अपने विभिन्न रंगो से मनोरम छटा बिखेरते हैं। भारत के सबसे दक्षिण छोर पर बसा कन्याकुमारी वर्षो से कला, संस्कृति, सभ्यता का प्रतीक रहा है। भारत के पर्यटक स्थल के रूप में भी इस स्थान का अपना ही महत्च है। दूर-दूर फैले समुद्र के विशाल लहरों के बीच यहां का सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा बेहद आकर्षक लगता हैं। समुद्र बीच पर फैले रंग बिरंगी रेत इसकी सुंदरता में चार चांद लगा देता है।
इतिहास
कन्याकुमारी दक्षिण भारत के महान शासकों चोल, चेर, पांड्य के अधीन रहा है। यहां के स्मारकों पर इन शासकों की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। इस जगह का नाम कन्याकुमारी पड़ने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने असुर बानासुरन को वरदान दिया था कि कुंवारी कन्या के अलावा किसी के हाथों उसका वध नहीं होगा। प्राचीन काल में भारत पर शासन करने वाले राजा भरत को आठ पुत्री और एक पुत्र था। भरत ने अपना साम्राज्य को नौ बराबर हिस्सों में बांटकर अपनी संतानों को दे दिया। दक्षिण का हिस्सा उसकी पुत्री कुमारी को मिला। कुमारी को शक्ति देवी का अवतार माना जाता था। कुमारी ने दक्षिण भारत के इस हिस्से पर कुशलतापूर्वक शासन किया। उसकी ईच्छा थी कि वह शिव से विवाह करें। इसके लिए वह उनकी पूजा करती थी। शिव विवाह के लिए राजी भी हो गए थे और विवाह की तैयारियां होने लगीं थी। लेकिन नारद मुनि चाहते थे कि बानासुरन का कुमारी के हाथों वध हो जाए। इस कारण शिव और देवी कुमारी का विवाह नहीं हो पाया। इस बीच बानासुरन को जब कुमारी की सुंदरता के बारे में पता चला तो उसने कुमारी के समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा। कुमारी ने कहा कि यदि वह उसे युद्ध में हरा देगा तो वह उससे विवाह कर लेगी। दोनों के बीच युद्ध हुआ और बानासुरन को मृत्यु की प्राप्ति हुई। कुमारी की याद में ही दक्षिण भारत के इस स्थान को कन्याकुमारी कहा जाता है। माना जाता है कि शिव और कुमारी के विवाह की तैयारी का सामान आगे चलकर रंग बिरंगी रेत में परिवर्तित हो गया।
दर्शनीय स्थल
कन्याकुमारी अम्मन मंदिर
सागर के मुहाने के दाई ओर स्थित यह एक
छोटा सा मंदिर है जो पार्वती को समर्पित है। मंदिर तीनों समुद्रों के संगम स्थल पर
बना हुआ है। यहां सागर की लहरों की आवाज स्वर्ग के संगीत की भांति सुनाई देती है। भक्तगण
मंदिर में प्रवेश करने से पहले त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाते हैं जो मंदिर के बाई
ओर 500 मीटर की दूरी पर है। मंदिर का पूर्वी प्रवेश द्वार को हमेशा बंद करके रखा जाता
है क्योंकि मंदिर है। कहा जाता है कि किसी जमाने में मंदिर में स्थापित देवी
के आभूषण की आभा को समुद्री जहाज़ लाइट हाउस समझने की भूल कर
बैठते थे, जिस कारण जहाज़ को किनारे करने की कोशिश में वे दुर्घटनाग्रस्त हो जाते
थे।
कुमारी
अम्मन मंदिर अथवा कन्याकुमारी मंदिर कन्याकुमारी, तमिलनाडु में स्थित
है। समुद्र के तट पर स्थित 'कुमारी अम्मन मंदिर' दक्षिण भाषी
लोगों की श्रद्धा और आस्था का प्रमुख केन्द्र है। इस मंदिर का निर्माण पाण्ड्य
राजवंश के शासन काल में हुआ था। मंदिर में सोलह स्तम्भों का एक मंडप निर्मित
है। मंदिर के गर्भगृह में स्थित अम्मन देवी की नयनाभिराम मूर्ति लोगों को बरबस ही
अपनी ओर आकर्षित करती है। देवी की नथ में जड़ा हुआ शुद्ध कीमती हीरा दूर
तक अपनी जगमगाहट बिखेरता है। इसी मंदिर से कुछ दूरी पर 'सावित्री घाट', 'गायत्री
घाट', 'स्याणु घाट' व 'तीर्थ घाट' स्थित हैं। इन घाटों पर स्नान के
उपरांत मंदिर में देवी दर्शनों की परंपरा है।
स्थिति
जिस स्थान पर 'हिन्द महासागर', 'अरब सागर' और 'बंगाल की खाड़ी' की
धाराएँ भारत की धरती को चूमती हैं, ठीक वहीं पर 'कुमारी अम्मन मंदिर'
स्थित है। यह देवी पार्वती का मंदिर है। मंदिर के पास समुद्र की लहरों
की आवाज़ ऐसी सुनाई देती है, मानो स्वर्ग का संगीत कानों में रस घोल रहा
हो। यहाँ आने वाले भक्तगण मंदिर में प्रवेश करने से पहले त्रिवेणी संगम में डुबकी
लगाते हैं। मंदिर के पूर्वी प्रवेश द्वार को हमेशा बंद करके रखा जाता है। कहा जाता
है कि किसी जमाने में मंदिर में स्थापित देवी के आभूषण की आभा को
समुद्री जहाज़ लाइट हाउस समझने की भूल कर बैठते थे, जिस कारण जहाज़ को किनारे करने
की कोशिश में वे दुर्घटनाग्रस्त हो जाते थे।
पौराणिक उल्लेख
पूर्वाभिमुख इस मंदिर का मुख्य द्वार केवल विशेष
अवसरों पर ही खुलता है, इसलिए श्रद्धालुओं को उत्तरी द्वार से प्रवेश करना होता
है। इस द्वार का एक छोटा-सा गोपुरम है। क़रीब 10 फुट ऊंचे परकोटे से घिरे वर्तमान
मंदिर का निर्माण पाण्ड्य राजवंश के राजाओं के शासन काल में हुआ था।
देवी कुमारी पाण्ड्य राजाओं की अधिष्ठात्री देवी थीं। पौराणिक आख्यानों के अनुसार
शक्ति की देवी बाणासुर का अंत करने के लिए अवतरित हुई थीं। बाणासुर के
अत्याचारों से जब धर्म का नाश होने लगा तो सभी देवता भगवान विष्णु की
शरण में पहुँचे। उन्होंने देवताओं को बताया कि उस असुर का अंत केवल देवी
पराशक्ति ही कर सकती हैं। भगवान विष्णु को यह बात विदित थी कि बाणासुर ने इतने
वरदान पा लिए हैं कि उसे कोई नहीं मार सकता। लेकिन उसने यह वरदान नहीं मांगा था कि
एक कुंवारी कन्या उसका अंत नहीं कर सकती। देवताओं ने अपने तप से पराशक्ति को
प्रसन्न किया और बाणासुर से मुक्ति दिलाने का वचन भी ले लिया। तब देवी ने एक कन्या
के रूप में अवतार लिया।
बाणासुर
का अंत
कुछ वर्षों बाद जब कन्या युवावस्था को प्राप्त
हुई तो 'सुचिन्द्रम' में उपस्थित भगवान शिव से उनका विवाह होना
निश्चित हुआ, क्योंकि देवी तो पार्वती का ही रूप थीं। लेकिन नारद मुनि के
गुप्त प्रयासों से उनका विवाह संपन्न नहीं हो सका तथा उन्होंने आजीवन कुंवारी रहने
का व्रत ले लिया। नारद जी को ज्ञात था कि देवी के अवतार का उद्देश्य
बाणासुर को समाप्त करना है। यह उद्देश्य वे एक कुंवारी कन्या के रूप में ही पूरा
कर सकेंगी। फिर वह समय भी आ गया। बाणासुर ने जब देवी कुंवारी के सौंदर्य के विषय
में सुना तो वह उनके समक्ष विवाह का प्रस्ताव ले कर पहुँचा। देवी क्रोधित हो गई तो
बाणासुर ने उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। उस समय उन्होंने कन्या कुंवारी के रूप में
अपने चक्र आयुध से बाणासुर का अंत किया। तब देवताओं ने समुद्र तट पर पराशक्ति के
'कन्याकुमारी' स्वरूप का मंदिर स्थापित किया। इसी आधार पर यह स्थान भी 'कन्याकुमारी'
कहलाया तथा मंदिर को 'कुमारी अम्मन' यानी 'कुमारी देवी' का मंदिर कहा जाने लगा।
तिरुवल्लुवर
की प्रतिमा
यह भी माना जाता है कि चैतन्य महाप्रभु 'कुमारी
अम्मन मंदिर' में जल यात्रा पर्व पर आए थे। यहाँ मंदिर में पुरुषों को ऊपरी वस्त्र
यानी शर्ट एवं बनियान उतार कर जाना होता है। सागर तट से कुछ दूरी पर मध्य में दो
चट्टानें नज़र आती हैं। दक्षिण पूर्व में स्थित इन चट्टानों में से एक चट्टान पर
विशाल प्रतिमा पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करती है। वह प्रतिमा प्रसिद्ध तमिल संत कवि
तिरुवल्लुवर की है। वह आधुनिक मूर्तिशिल्प 5000 शिल्पकारों की मेहनत से बन कर
तैयार हुआ था। इसकी ऊंचाई 133 फुट है, जो कि तिरुवल्लुवर द्वारा रचित काव्य ग्रंथ
'तिरुवकुरल' के 133 अध्यायों का प्रतीक है।
गांधी स्मारक
तिरूवल्लुवर मूर्ति
तिरुक्कुरुल की रचना करने वाले अमर तमिल कवि तिरूवल्लुवर की यह प्रतिमा पर्यटकों को बहुत लुभाती है। 38 फीट ऊंचे आधार पर बनी यह प्रतिमा 95 फीट की है। इस प्रतिमा की कुल उंचाई 133 फीट है और इसका वजन 2000 टन है। इस प्रतिमा को बनाने में कुल 1283 पत्थर के टुकड़ों का उपयोग किया गया था।
विवेकानंद रॉक मेमोरियल
सुचीन्द्रम
यह छोटा-सा गांव कन्याकुमारी से लगभग 12 किमी दूर स्थित है। यहां का थानुमलायन मंदिर काफी प्रसिद्ध है। मंदिर में स्थापित हनुमान की छह मीटर की उंची मूर्ति काफी आकर्षक है। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में ब्रह्मा, विष्णु और महेश जोकि इस ब्रह्मांड के रचयिता समझे जाते है उनकी मूर्ति स्थापित है। यहां नौवीं शताब्दी के प्राचीन अभिलेख भी पाए गए हैं। सुचीन्द्रम शक्तिपीठ हिन्दूओं के लिए प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य, कन्याकुमारी में स्थित है। माना जाता है कि सुचिंद्रम में ‘सुची’ शब्द संस्कृत से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘शुद्ध’ होना। सुचीन्द्रम शक्ति पीठ को ठाँउमालयन या स्तानुमालय मंदिर भी कहा जाता है।
यह मंदिर सात मंजिला है जिसका सफेद गोपुरम काफी दूर से दिखाई देता है। इस मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में किया गया था। सुचीन्द्रम शक्तिपीठ, मंदिर में बनी हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर का प्रवेश द्वार लगभग 24 फीट उंचा है जिसके दरवाजे पर सुंदर नक्काशी की गई है। यह मंदिर बड़ी संख्या में वैष्णव और सैवियों दोनों को आकर्षित करता है। मंदिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं के लिए लगभग 30 मंदिर है जिसमें पवित्र स्थान में बड़ा लिंगम, आसन्न मंदिर में विष्णु की मूर्ति और उत्तरी गलियारे के पूर्वी छोर पर हनुमान की एक बड़ी मूर्ति है। यह मंदिर हिंदू धर्म के लगभग सभी देवी-देवताओं का प्रतिनिधित्व करता है।
मंदिर के मुख्य देवता भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा को एक ही रूप में स्तरनुमल्याम कहा जाता है। स्तरनुमल्याम तीन देवताओं को दर्शाता है जिसमें ‘स्तानु’ का अर्थ ‘शिव’ है, ‘माल’ का अर्थ ‘विष्णु’ है और ‘आयन’ का अर्थ ‘ब्रह्मा’ है। भारत के उन मंदिरों में से एक है जिसमें त्रीमूर्ति व तीनों देवताओं की पूजा एक मंदिर में की जाती है। यह मंदिर माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर में शक्ति को नारायणी के रूप पूजा जाता है और भैरव को संहार भैरव के रूप में पूजा जाता है। पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाते हैं। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने उनके पिता दक्षेस्वर द्वारा किये यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिये थे, तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण चक्कर लगा रहे थे इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें से सती की ऊपर के दांत इस स्थान पर गिरे थे। पौराणिक कथा के अनुसार देवों के राजा इन्द्र को महर्षि गौतम द्वारा दिये गए अभिशाप से इस स्थान पर मुक्ति मिली थी।
सुचीन्द्रम शक्तिपीठ में सभी त्यौहार मनाये जाते है विशेष कर शिवरात्रि, दुर्गा पूजा और नवरात्र के त्यौहार पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। लेकिन दो प्रमुख त्यौहार है, जो इस मंदिर का प्रमुख आकर्षण का केन्द्र हैं, ‘सुचंद्रम मर्गली त्यौहार’ और ‘रथ यात्रा’ हैं। इन त्यौहारों के दौरान, कुछ लोग भगवान की पूजा के प्रति सम्मान और समर्पण के रूप में व्रत (भोजन नहीं खाते) रखते हैं। त्यौहार के दिनों में मंदिर को फूलो व लाईट से सजाया जाता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करता है।
नागराज मंदिर
कन्याकुमारी से 20 किमी दूर नगरकोल का नागराज मंदिर नाग देव को समर्पित है। यहां भगवान विष्णु और शिव के दो अन्य मंदिर भी हैं। मंदिर का मुख्य द्वार चीन की बुद्ध विहार की कारीगरी की याद दिलाता है।
पद्मनाभपुरम महल
पद्मनाभपुरम महल की विशाल हवेलियां त्रावनकोर के राजा द्वारा बनवाया हैं। ये हवेलियां अपनी सुंदरता और भव्यता के लिए जानी जाती हैं। कन्याकुमारी से इनकी दूरी 45 किमी है। यह महल केरल सरकार के पुरातत्व विभाग के अधीन हैं।
कोरटालम झरना
यह झरना 167 मीटर ऊंची है। इस झरने के जल को औषधीय गुणों से युक्त माना जाता है। यह कन्याकुमारी से 137 किमी दूरी पर स्थित है।
तिरूचेन्दूर
85 किमी दूर स्थित तिरूचेन्दूर के खूबसूरत मंदिर भगवान सुब्रमण्यम को समर्पित हैं। बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित इस मंदिर को भगवान सुब्रमण्यम के 6 निवासों में से एक माना जाता है।
उदयगिरी किला
कन्याकुमारी से 34 किमी दूर यह किला राजा मरतड वर्मा द्वारा 1729-1758 ई. दौरान बनवाया गया था। इसी किले में राजा के विश्वसनीय यूरोपियन दोस्त जनरल डी लिनोय की समाधि भी है।
चित्रदीर्घा
चित्रदीर्घा
सूर्योदय में विवेकानंद स्मारक और वल्लुवर मूर्ति
फ्रान्सिस ज़ेवियर गिरजाचित्रदीर्घा
कीरीपरई के समीप वट्टपरई
मुट्टोम प्रकाशस्तम्भ (लाइटहाउस), सौ वर्षों से भी पुराना
रात्रि में गाँधी मंडपम, कन्याकुमारी
कन्याकुमारी के पास कोवलम गाँव
तिरुपरप्पु जलप्रपात
उदयगिरि दुर्ग में कप्तान दे लान्नोय की कब्र
सुनामी स्मारक
आवागमन
वायुमार्ग-
नजदीकी एयरपोर्ट तिरूअनंतपुरम है जो कन्याकुमारी से 89 किलोमीटर दूर है। यहां से बस या टैक्सी के माध्यम से कन्याकुमारी पहुंचा जा सकता है। यहां से लक्जरी कार भी किराए पर उपलब्ध हैं।
रेलमार्ग-
कन्याकुमारी चैन्नई सहित भारत के प्रमुख शहरों से रेल मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। चैन्नई से कन्याकुमारी एक्सप्रेस द्वारा यहां जाया जा सकता है।
सड़क मार्ग-
बस द्वारा कन्याकुमारी जाने के लिए त्रिची, मदुरै, चैन्नई, तिरूअनंतपुरम और तिरूचेन्दूर से नियमित बस सेवाएं हैं। तमिलनाड़ पर्यटन विभाग कन्याकुमारी के लिए सिंगल डे बस टूर की व्यवस्था भी करता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 44 का दक्षिणी छोर यहाँ है और यह उत्तर दिशा में जम्मू और कश्मीर तक जाता है।
भ्रमण समय
समुद्र के किनारे होने के कारण कन्याकुमारी में साल भर मनोरम वातावरण रहता है। यूं तो पूरा साल कन्याकुमारी जाने लायक होता है लेकिन फिर भी पर्यटन के लिहाज से अक्टूबर से मार्च की अवधि सबसे बेहतर मानी जाती है।
खरीददारी
पर्यटक अक्सर यहां से विभिन्न रंगों के रेत के पैकेट खरीदतें हैं। यहां से सीप और शंख के अलावा प्रवाली शैलभित्ती के टुकड़ों की खरीददारी की जा सकती है। साथ ही केरल शैली की नारियल जटाएं और लकड़ी की हैंडीक्राफ्ट भी खरीदी जा सकती हैं।
जनसांख्यिकी
अदभुत, अविस्मरणीय, अतुल्य भारत ...
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