लद्दाख़

                 (आधुनिक लद्दाख के साथ कश्मीर का नक्शा बैंगनी रंग में दर्शाया गया)

लद्दाख़

लद्दाख (तिब्बती लिपि: ལ་དྭགས་  ; " ऊँचे दर्रों (passes) की भूमि") भारत का एक केन्द्र शासित प्रदेश है, जो उत्तर में काराकोरम पर्वत और दक्षिण में हिमालय पर्वत के बीच में है। यह भारत के सबसे विरल जनसंख्या वाले भागों में से एक है। भारत गिलगित बलतिस्तान और अक्साई चिन को भी इसका भाग मानता है, जो वर्तमान में क्रमशः पाकिस्तान और चीनके अवैध कब्जे में है। यह पूर्व में तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र, दक्षिण में भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर के भारतीय प्रशासित केन्द्र शासित प्रदेश और पश्चिम में पाकिस्तान प्रशासित गिलगित-बल्तिस्तान और दक्षिण-पूर्वी कोने से घिरा है। सुदूर उत्तर में क़ाराक़ोरम दर्रा पर शिंजियांग। यह काराकोरम रेंज में सियाचिन ग्लेशियर से लेकर उत्तर में दक्षिण में मुख्य महान हिमालय तक फैला हुआ है। पूर्वी छोर, जिसमें निर्जन अक्साई चिन मैदान शामिल हैंभारत सरकार द्वारा लद्दाख के हिस्से के रूप में दावा किया जाता है, और 1962 से चीनी नियन्त्रण में है। अगस्त 2019 में, भारत की संसद ने जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 पारित किया जिसके द्वारा 31 अक्टूबर 2019 को लद्दाख एक केन्द्र शासित प्रदेश बन गया। लद्दाख क्षेत्रफल में भारत का सबसे बड़ा केन्द्र शासित प्रदेश है। लद्दाख सबसे कम आबादी वाला केन्द्र शासित प्रदेश है।

केन्द्र शासित प्रदेश लद्दाख के अन्तर्गत पाक अधिकृत गिलगित बलतिस्तान ,चीन अधिकृत अक्साई चिन और शक्सगम घाटी का क्षेत्र भी शामिल है इसके अलावा सन 1963 में पाकिस्तान द्वारा 5180 वर्ग किलोमीटर का शक्सगम घाटी क्षेत्र चीन को उपहार में दिया गया ,जो लद्दाख का हिस्सा है इसके उत्तर में चीन तथा पूर्व में तिब्बत की सीमाएँ हैं। सीमावर्ती स्थिति के कारण सामरिक दृष्टि से इसका बड़ा महत्व है। लद्दाख, उत्तर-पश्चिमी हिमालय के पर्वतीय क्रम में आता है, जहाँ का अधिकांश धरातल कृषि योग्य नहीं है। यहाँ की जलवायु अत्यन्त शुष्क एवं कठोर है। वार्षिक वृष्टि 3.2 इंच तथा वार्षिक औसत ताप 5 डिग्री सें. है। नदियाँ दिन में कुछ ही समय प्रवाहित हो पाती हैं, शेष समय में बर्फ जम जाती है। सिंधु मुख्य नदी है। केन्द्र शासित प्रदेश लद्दाख की राजधानी एवं प्रमुख नगर लेह है, जिसके उत्तर में कराकोरम पर्वत तथा दर्रा है। अधिकांश जनसंख्या घुमक्कड़ है, जिसकी प्रकृति, संस्कार एवं रहन-सहन तिब्बत एवं नेपाल से प्रभावित है। पूर्वी भाग में अधिकांश लोग बौद्ध हैं तथा पश्चिमी भाग में अधिकांश लोग मुसलमान हैं। बौद्धों का सबसे बड़ा धार्मिक संस्थान है।

देश

 भारत

केन्द्र-शासित प्रदेश

31 अक्तूबर 2019[1]

राजधानी

लेह[2] लद्दाख का कुल क्षेत्रफल 1,66,698 वर्ग किलोमीटर है। जिसमें से 59,146 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ही भारत के नियंत्रण में है।बाकि क्षेत्र पाकिस्तान और चीन के अवैध कब्जे में है।

ज़िले

2

लेह

कारगिल

शासन

 • उपराज्यपाल

राधाकृष्ण माथुर

 • सांसद

जमयांग सेरिंग नामग्याल (भाजपा)

 • उच्च न्यायालय

जम्मू- कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय

क्षेत्रफल

 • कुल

59146 किमी2 (22,836 वर्गमील)

अधिकतम ऊँचाई (साल्तोरो कांगरी[4])

7,742 मी (25,400 फीट)

निम्नतम ऊँचाई (सिन्धु नदी)

2550 मी (8,370 फीट)

जनसंख्या (2011)

 • कुल

2,74,289

 • घनत्व

4.6 किमी2 (12 वर्गमील)

वासीनाम

लद्दाख़ी

भाषाएँ

 • आधिकारिक

हिन्दीलद्दाख़ीतिब्बती

समय मण्डल

भामस (यूटीसी+5:30)

वाहन पंजीकरण

LA

मुख्य नगर

लेहकर्गिल

वेबसाइट

https://ladakh.nic.in/

इतिहास

लद्दाख में कई स्थानों पर मिले शिलालेखों से पता चलता है कि यह स्थान नव-पाषाणकाल से स्थापित है। लद्दाख के प्राचीन निवासी मोन और दार्द लोगों का वर्णन हेरोडोट्स, नोर्चुस, मेगस्थनीज, प्लीनी, टॉलमी और नेपाली पुराणों ने भी किया है। पहली शताब्दी के आसपास लद्दाख कुषाण राज्य का हिस्सा था। बौद्ध धर्म दूसरी शताब्दी में कश्मीर से लद्दाख में फैला। उस समय पूर्वी लद्दाख और पश्चिमी तिब्बत में परम्परागत बोन धर्म था। सातवीं शताब्दी में बौद्ध यात्री ह्वेनसांग ने भी इस क्षेत्र का वर्णन किया है।

आठवीं शताब्दी में लद्दाख पूर्व से तिब्बती प्रभाव और मध्य एशिया से चीनी प्रभाव के टकराव का केन्द्र बन गया। इस प्रकार इसका आधिपत्य बारी-बारी से चीन और तिब्बत के हाथों में आता रहा। सन 842 में एक तिब्बती शाही प्रतिनिधि न्यिमागोन ने तिब्बती साम्राज्य के विघटन के बाद लद्दाख को कब्जे में कर लिया और पृथक लद्दाखी राजवंश की स्थापना की। इस दौरान लद्दाख में मुख्यतः तिब्बती जनसंख्या का आगमन हुआ। राजवंश ने उत्तर-पश्चिम भारत खासकर कश्मीर से धार्मिक विचारों और बौद्ध धर्म का खूब प्रचार किया। इसके अलावा तिब्बत से आये लोगों ने भी बौद्ध धर्म को फैलाया। और पश्चिम में तिब्बतियों का सामना एक विदेशी राज्य शुंग शांग से हुआ जिसकी राजधानी क्युंगलुंग थी। कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील इस राज्य के भाग थे। इसकी भाषा हमें प्रारम्भिक आलेखों से पता चलती है। यह अभी भी अज्ञात है, लेकिन यह इण्डो-यूरोपियन लगती है। ... भौगोलिक रूप से यह राज्य भ्रत कश्मीर दोनों के रास्ते नेपाल से मिलता है। कैलाश नेपालीयों के लिये पवित्र स्थान है। वे यहां की तीर्थयात्रा पर आते हैं। कोई नहीं जानता कि वे ऐसा कब से कर रहे हैं, लेकिन वे तब से पहले से आते हैं जब शांगशुंग तिब्बत से आजाद था। शांगशुंग कितने समय तक उत्तर, पूर्व और पश्चिम से अलग रहा, यह नहीं मालूम।... हमारे पास यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि पवित्र कैलाश पर्वत के कारण यहां हिन्दू धर्म से मिलता-जुलता धर्म रहा होगा। सन 950 में, काबुल के हिन्दू राजा के पास विष्णु की तीन सिर वाली एक मूर्ति थी जिसे उसने भोट राजा से प्राप्त हुई बताया था।

(किंग नीमोगोन की अवधि के दौरान लद्दाख की क्षेत्रीय सीमा, लगभग 9 75-1000 ईस्वी, जैसा कि पश्चिम रॉयल 1 के इतिहास में दर्शाया गया है, और राजा जामियांग रानम रियाल के बारे में, लगभग 1560 और 1600 ई।)

17वीं शताब्दी में लद्दाख का एक कालक्रम बनाया गया, जिसका नाम ला ड्वाग्स रग्याल राब्स था। इसका अर्थ होता है लद्दाखी राजाओं का शाही कालक्रम। इसमें लिखा है कि इसकी सीमाएं परम्परागत और प्रसिद्ध हैं। कालक्रम का प्रथम भाग 1610 से 1640 के मध्य लिखा गया और दूसरा भाग 17वीं शताब्दी के अन्त में। इसे . एच. फ्रैंक ने अंग्रेजी में अनुवादित किया औरनेपाली प्राचीन तिब्बतके नाम से 1926 में कलकत्ता में प्रकाशित कराया। इसके दूसरे खण्ड में लिखा है कि राजा साइकिड-इडा-नगीमा-गोन ने राज्य को अपने तीन पुत्रों में विभक्त कर दिया और पुत्रों ने राज्य की सीमाओं को सुरक्षित रखा।

पुस्तक के अवलोकन से पता चलता है कि रुडोख लद्दाख का अभिन्न भाग था। परिवार के विभाजन के बाद भी रुडोख लद्दाख का हिस्सा बना रहा। इसमें मार्युल का अर्थ है निचली धरती, जो उस समय लद्दाख का ही हिस्सा थी। दसवीं शताब्दी में भी रुडोख और देमचोक दोनों लद्दाख के हिस्से थे।

13वीं शताब्दी में जब दक्षिण एशिया में इस्लामी प्रभाव बढ रहा था, तो लद्दाख ने धार्मिक मामलों में तिब्बत से मार्गदर्शन लिया। लगभग दो शताब्दियों बाद सन 1600 तक ऐसा ही रहा। उसके बाद पडोसी मुस्लिम राज्यों के हमलों से यहां आंशिक धर्मान्तरण हुआ।

राजा ल्हाचेन भगान ने लद्दाख को पुनर्संगठित और शक्तिशाली बनाया नामग्याल वंश की नींव डाली जो वंश आज तक जीवित है। नामग्याल राजाओं ने अधिकतर मध्य एशियाई हमलावरों को खदेडा और अपने राज्य को कुछ समय के लिये नेपाल तक भी बढा लिया। हमलावरों ने क्षेत्र को धर्मान्तरित करने की खूब कोशिश की और बौद्ध कलाकृतियों को तोडा फोडा। सत्रहवीं शताब्दी के आरम्भ में कलाकृतियों का पुनर्निर्माण हुआ और राज्य को जांस्कर स्पीति में फैलाया। फिर भी, मुगलों के हाथों हारने के बावजूद भी लद्दाख ने अपनी स्वतन्त्रता बरकरार रखी। मुगल पहले ही कश्मीर बाल्टिस्तान पर कब्जा कर चुके थे।

सन 1594 में बाल्टी राजा अली शेर खां अंचन के नेतृत्व में बाल्टिस्तान ने नामग्याल वंश वाले लद्दाख को हराया। कहा जाता है कि बाल्टी सेना सफलता से पागल होकर पुरांग तक जा पहुंची थी जो मानसरोवर झील की घाटी में स्थित है। लद्दाख के राजा ने शान्ति के लिये विनती की और चूंकि अली शेर खां की इच्छा लद्दाख पर कब्जा करने की नहीं थी, इसलिये उसने शर्त रखी कि गनोख और गगरा नाला गांव स्कार्दू को सौंप दिये जायें और लद्दाखी राजा हर साल कुछ धनराशि भी भेंट करे। यह राशि लामायुरू के गोम्पा तब तक दी जाती रही जब तक कि डोगराओं ने उस पर अधिकार नहीं कर लिया।

सत्रहवीं शताब्दी के आखिर में लद्दाख ने किसी कारण से तिब्बत की लडाई में भूटान का पक्ष लिया। नतीजा यह हुआ कि तिब्बत ने लद्दाख पर भी आक्रमण कर दिया। यह घटना 1679-1684 का तिब्बत-लद्दाख-मुगल युद्ध कही जाती है। तब कश्मीर ने इस शर्त पर लद्दाख का साथ दिया कि लेह में एक मस्जिद बनाई जाये और लद्दाखी राजा इस्लाम कुबूल कर ले। 1684 में तिंगमोसगंज की सन्धि हुई जिससे तिब्बत और लद्दाख का युद्ध समाप्त हो गया। 1834 में डोगरा राजा गुलाब सिंह के जनरल जोरावर सिंह ने लद्दाख पर आक्रमण किया और उसे जीत लिया। 1842 में एक विद्रोह हुआ जिसे कुचल दिया गया तथा लद्दाख को जम्मू कश्मीर के डोगरा राज्य में विलीन कर लिया गया। नामग्याल परिवार को स्टोक की नाममात्र की जागीर दे दी गई। 1850 के दशक में लद्दाख में यूरोपीय प्रभाव बढा और फिर बढता ही गया। भूगोलवेत्ता, खोजी और पर्यटक लद्दाख आने शुरू हो गये। 1885 में लेह मोरावियन चर्च के एक मिशन का मुख्यालय बन गया।

                                                              (1870 के दशक में हेमिस मठ)

1947 में भारत विभाजन के समय डोगरा राजा हरिसिंह ने जम्मू कश्मीर को भारत में विलय की मंजूरी दे दी। पाकिस्तानी घुसपैठी लद्दाख पहुंचे और उन्हें भगाने के लिये सैनिक अभियान चलाना पडा। युद्ध के समय सेना ने सोनमर्ग से जोजीला दर्री पर टैंकों की सहायता से कब्जा किये रखा। सेना आगे बढी और द्रास, कारगिल लद्दाख को घुसपैठियों से आजाद करा लिया गया।

1949 में चीन ने नुब्रा घाटी और जिनजिआंग के बीच प्राचीन व्यापार मार्ग को बन्द कर दिया। 1955 में चीन ने जिनजिआंग तिब्बत को जोदने के लिये इस इलाके में सडक बनानी शुरू की। उसने पाकिस्तान से जुडने के लिये कराकोरम हाईवे भी बनाया। भारत ने भी इसी दौरान श्रीनगर-लेह सडक बनाई जिससे श्रीनगर और लेह के बीच की दूरी सोलह दिनों से घटकर दो दिन रह गई। हालांकि यह सडक जाडों में भारी हिमपात के कारण बन्द रहती है। जोजीला दर्रे के आरपार 6.5 किलोमीटर लम्बी एक सुरंग का प्रस्ताव है जिससे यह मार्ग जाडों में भी खुला रहेगा। पूरा जम्मू कश्मीर राज्य भारत, पाकिस्तान और चीन के बीच युद्ध का मुद्दा रहता है। कारगिल में भारत-पाकिस्तान के बीच 1947, 1965 और 1971 में युद्ध हुए और 1999 में तो यहां परमाणु युद्ध तक का खतरा हो गया था।

1999 में जो कारगिल युद्ध हुआ उसे भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय का नाम दिया गया। इसकी वजह पश्चिमी लद्दाख मुख्यतः कारगिल, द्रास, मश्कोह घाटी, बटालिक और चोरबाटला में पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ थी। इससे श्रीनगर-लेह मार्ग की सारी गतिविधियां उनके नियन्त्रण में हो गईं। भारतीय सेना ने आर्टिलरी और वायुसेना के सहयोग से पाकिस्तानी सेना को लाइन ऑफ कण्ट्रोल के उस तरफ खदेडने के लिये व्यापक अभियान चलाया।

1984 से लद्दाख के उत्तर-पूर्व सिरे पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद की एक और वजह बन गया। यह विश्व का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र है। यहां 1972 में हुए शिमला समझौते में पॉइण्ट 9842 से आगे सीमा निर्धारित नहीं की गई थी। यहां दोनों देशों में साल्टोरो रिज पर कब्जा करने की होड रहती है। कुछ सामरिक महत्व के स्थानों पर दोनों देशों ने नियन्त्रण कर रखा है, फिर भी भारत इस मामले में फायदे में है।

1979 में लद्दाख को कारगिल लेह जिलों में बांटा गया। 1989 में बौद्धों और मुसलमानों के बीच दंगे हुए। 1990 के ही दशक में लद्दाख को कश्मीरी शासन से छुटकारे के लिये लद्दाख ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेण्ट काउंसिल का गठन हुआ और अंततः अगस्त २०१९ को यह भारत का नौवाँ केन्द्र शासित प्रदेश बन गया। NOTE:'तिबतन सिविलाइजेशन के लेखक रोल्फ अल्फ्रेड स्टेन के अनुसार शांग शुंग का इलाका ऐतिहासिकि रूप से तिब्बत का भाग नहीं था। यह तिब्बतियों के लिये विदेशी भूमि था। उनके अनुसार:

भूगोल

लद्दाख जम्मू कश्मीर राज्य के पूर्व में स्थित एक ऊंचा पठार है जिसका अधिकतर हिस्सा 3000 मीटर (9800 फीट) से ऊंचा है। यह हिमालय और कराकोरम पर्वत श्रंखला और सिन्धु नदी की ऊपरी घाटी में फैला है।

इसमें बाल्टिस्तान (वर्तमान में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में), सिन्धु घाटी, जांस्कर, दक्षिण में लाहौल और स्पीति, पूर्व में रुडोक गुले, अक्साईचिन और उत्तर में खारदुंगला के पार नुब्रा घाटी शामिल हैं। लद्दाख की सीमाएं पूर्व में तिब्बत से, दक्षिण में लाहौल और स्पीति से, पश्चिम में जम्मू कश्मीर बाल्टिस्तान से और सुदूर उत्तर में कराकोरम दर्रे के उस तरफ जिनजियांग के ट्रांस कुनलुन क्षेत्र से मिलती हैं।

विभाजन से पहले बाल्टिस्तान (अब पाकिस्तानी नियन्त्रण में) लद्दाख का एक जिला था। स्कार्दू लद्दाख की शीतकालीन राजधानी और लेह ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करती थी।

इस क्षेत्र में 45 मिलियन वर्ष पहले भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट के दबाव से पर्वतों का निर्माण हुआ। दबाव बढता गया और इस क्षेत्र में इससे भूकम्प भी आते रहे। जोजीला के पास पर्वत चोटियां 5000 मीटर से शुरू होकर दक्षिण-पूर्व की तरफ ऊंची होती जाती हैं और नुनकुन तक इनकी ऊंचाई 7000 मीटर तक पहुंच गई है।

सुरु और जांस्कर घाटी शानदार द्रोणिका का निर्माण करती हैं। सूरू घाटी में रांगडम सबसे ऊंचा आवासीय स्थान है। इसके बाद पेंसी-ला तक यह उठती ही चली जाती है। पेंसी-ला जांस्कर का प्रवेश द्वार है। कारगिल जोकि सुरू घाटी का एकमात्र शहर है, लद्दाख का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। यह 1947 से पहले कारवां व्यापार का मुख्य स्थान था। यहां से श्रीनगर, पेह, पदुम और स्कार्दू लगभग बराबर दूरी पर स्थित हैं। इस पूरे क्षेत्र में भारी बर्फबारी होती है। पेंसी-ला केवल जून से मध्य अक्टूबर तक ही खुला रहता है। द्रास और मश्कोह घाटी लद्दाख का पश्चिमी सिरा बनाते हैं।

सिन्धु नदी लद्दाख की जीवनरेखा है। ज्यादातर ऐतिहासिक और वर्तमान स्थान जैसे कि लेह, शे, बासगो, तिंगमोसगंग सिन्धु किनारे ही बसे हैं। 1947 के भारत-पाक युद्ध के बाद सिन्धु का मात्र यही हिस्सा लद्दाख से बहता है। सिन्धु हिन्दू धर्म में एक पूजनीय नदी है, जो केवल लद्दाख में ही बहती है।

सियाचिन ग्लेशियर पूर्वी कराकोरम रेंज में स्थित है जो भारत पाकिस्तान की विवादित सीमा बनाता है। कराकोरम रेंज भारतीय महाद्वीप और चीन के मध्य एक शानदार जलविभाजक बनाती है। इसे तीसरा ध्रुव भी कहा जाता है। 70 किलोमीटर लम्बा यह ग्लेशियर कराकोरम में सबसे लम्बा है और धरती पर ध्रुवों को छोडकर दूसरा सबसे लम्बा ग्लेशियर है। यह अपने मुख पर 3620 मीटर से लेकर चीन सीमा पर स्थित इन्दिरा पॉइण्ट पर 5753 मीटर ऊंचा है। इसके पास के दर्रे और कुछ ऊंची चोटियां दोनों देशों के कब्जे में हैं।

भारत में कराकोरम रेंज की सबसे पूर्व में स्थित सासर कांगडी सबसे ऊंची चोटी है। इसकी ऊंचाई 7672 मीटर है। लद्दाख में 857 वर्ग किमी लंबी सीमा में से केवल 368 वर्ग किमी अंतरराष्ट्रीय सीमा है, और शेष 489 वर्ग किमी वास्तविक नियंत्रण रेखा है।

लद्दाख रेंज में कोई प्रमुख चोटी नहीं है। पंगोंग रेंज चुशुल के पास से शुरू होकर पंगोंग झील के साथ साथ करीब 100 किलोमीटर तक लद्दाख रेंज के समानान्तर चलती है। इसमें श्योक नदी और नुब्रा नदी की घाटियां भी शामिल हैं जिसे नुब्रा घाटी कहते हैं। कराकोरम रेंज लद्दाख में उतनी ऊंची नहीं है जितनी बाल्टिस्तान में। कुछ ऊंची चोटियां इस प्रकार हैं- अप्सरासास समूह (सर्वोच्च चोटी 7245 मीटर), रीमो समूह (सर्वोच्च चोटी 7385 मीटर), तेराम कांगडी ग्रुप (सर्वोच्च चोटी 7464 मीटर), ममोस्टोंग कांगडी 7526 मीटर और सिंघी कांगडी 7751 मीटर। कराकोरम के उत्तर में कुनलुन है। इस प्रकार, लेह और मध्य एशिया के बीच में तीन श्रंखलाएं हैं- लद्दाख श्रंखला, कराकोरम और कुनलुन। फिर भी लेह और यारकन्द के बीच एक व्यापार मार्ग स्थापित था।

लद्दाख एक उच्च अक्षांसीय मरुस्थल है क्योंकि हिमालय मानसून को रोक देता है। पानी का मुख्य स्रोत सर्दियों में हुई बर्फबारी है। पिछले दिनों आई बाढ (2010 में) के कारण असामान्य बारिश और पिघलते ग्लेशियर हैं जिसके लिये निश्चित ही ग्लोबल वार्मिंग जिम्मेदार है।

द्रास, सूरू और जांस्कर में भारी बर्फबारी होती है और ये कई महीनों तक देश के बाकी हिस्सों से कटे रहते हैं। गर्मियां छोटी होती हैं यद्यपि फिर भी कुछ पैदावार हो जाती है। गर्मियां शुष्क और खुशनुमा होती हैं। गर्मियों में तापमान 3 से 35 डिग्री तक तथा सर्दियों में -20 से -35 डिग्री तक पहुंच जाता है।

भूभाग का वर्गीकरण

जिले का नाम

ज़िला मुख्यालय

क्षेत्रफल(किमी²)

जनसंख्या

2001 जनगणना

जनसंख्या

2011 जनगणना

कारगिल जिला

कारगिल

14,036

1,19,307

1,43,388

लेह जिला

लेह

45,110

1,17,232

1,47,104

कुल

59,146

2,36,539

2,90,492

जीव-जन्तु एवं वनस्पतियाँ

यह क्षेत्र शुष्क होने के कारण वनस्पति विहीन है. यहां जानवरों के चलने के लिए कहीं कहीं पर ही घास एवं छोटी-छोटी झाड़ियां मिलती है। घाटी में सरपत विलो एवं पॉपलर के उपवन देखे जा सकते हैं। ग्रीष्म ऋतु में सेब खुबानी एवं अखरोट जैसे पेड़ पल्लवित होते हैं। लद्दाख में पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां नजर आती हैं, इनमें रॉबिन, रेड स्टार्ट तिब्बती स्नोकोक, रेवेन यहां हूप पाए जाने वाले सामान्य पक्षी है।

लद्दाख के पशुओं में जंगली बकरी, जंगली भेड़ एवं याक विशेष प्रकार के कुत्ते आदि पाले जाते हैं।इन पशुओं को दूध मांस खाल प्राप्त करने के लिए पालें जातें हैं

टीका-टिप्पणी

Ladakh has 59,146 कि॰मी2 (6.3664×1011 वर्ग फुट) of area controlled by India and 72,971 कि॰मी2 (7.8545×1011 वर्ग फुट) of area controlled by Pakistan under Gilgit-Baltistan, which is claimed by India as part of Ladakh. Additionally, it has 5,180 कि॰मी2 (5.58×1010 वर्ग फुट) of area controlled by the People's Republic of China under Trans-Karakoram Tract and 37,555 कि॰मी2 (4.0424×1011 वर्ग फुट) of area controlled by the People's Republic of China under Aksai Chin, which is claimed by India as part of Ladakh.

लद्दाख का इतिहास

9 वीं शताब्दी के दौरान राज्य के जन्म से पहले लद्दाख के बारे में जानकारी दुर्लभ है। 9 50 सीई के बारे में राज्य की स्थापना से पहले, लद्दाख को शायद ही एक अलग राजनीतिक इकाई माना जा सकता है, तिब्बती साम्राज्य के प्रारंभिक पतन के बाद और सीमावर्ती क्षेत्रों स्वतंत्र शासकों के अधीन स्वतंत्र राज्य बन गए, जिनमें से ज्यादातर तिब्बती शाही परिवार की शाखाओं से आए थे।

प्राचीन इतिहास

 लद्दाख की आबादी में सबसे पुरानी परत शायद दर्डी शामिल थी। हेरोडोटस दो बार दंडिकै नामक लोगों का उल्लेख करता है, सबसे पहले गांदैरियो के साथ, और फिर ग्रीस के राजा ज़ेर्क्सस के आक्रमण की सूची में। हेरोडोटस ने मध्य एशिया के सोने की खुदाई की चींटियों का भी उल्लेख किया है, जो कि नरदीस के लोगों के संबंध में भी उल्लेख किया गया है, अलेक्जेंडर के एडमिरल और मेगास्थनीस

पहली सदी में, प्लिनी एल्डर ने दोहराता है कि दर्ड (लद्दाखी में ब्रोकपा) सोने के महान उत्पादक हैं। हेरमैन का तर्क है कि यह कहानी अंततः लद्दाख और बाल्टिस्तान में सोने की धुलाई के धुंधली ज्ञान पर वापस आती है। टॉलेमी सिंधु के ऊपरी किनारे पर दरारद्रे स्थित है, और नाम, दाड़ा, पुराणों की भौगोलिक सूची में उपयोग किया जाता है। राजनीतिक इतिहास की पहली झलक को "उवीमा कवतिसा" के खरोष्टी शिलालेख में पाया जाता है जो कि सिंधु पर के'-ला-आरटीएसई (खलत्से) पुल के पास की खोज की जाती है, यह दर्शाता है कि 1 सदी के आसपास, लद्दाख कुशन का हिस्सा था राज्य। कुछ अन्य छोटे ब्रह्मी और खारोही शिलालेख लद्दाख में पाए गए हैं।

चीनी-तीर्थयात्री भिक्षु, जुआनजांग, सी। 634 सीई, चुलडूदो (कूलाता, कोलू) से लुहुलांगो (लाहौल) के लिए एक यात्रा का वर्णन करता है और फिर यह कहता है, "[एफ] रोम, एक हजार से अधिक, आठ सौ या नौ सौ ली के लिए खतरनाक पथ और पहाड़ों और घाटियों पर, एक को लाहुल देश में ले जाया जाता है। उत्तर दिशा में दो हजार ली से अधिक कठिनाइयों और बाधाओं से भरा मार्ग के साथ, ठंडी हवाओं में और बर्फ के टुकड़े झुकाते हुए, मारे के देश तक पहुंच सकता है (यह भी सानोही के रूप में जाना जाता है) "[3] मोलूसूओ या मार्स का राज्य मार्च-युल का पर्याय बन सकता है, जो लद्दाख के लिए एक सामान्य नाम है। अन्यथा, पाठ-टिप्पणी में कहा गया है कि मो-लो-तो, सुवर्णगोत्रा ​​या सुवर्णभूमि (स्वर्ण की भूमि) के साथ सान-पो-हो बॉर्डर्स भी कहा जाता है, जो कि महिला साम्राज्य (स्ट्रिरज्य) के समान है। Tucci के अनुसार, Zhangzhung राज्य, या कम से कम अपने दक्षिणी जिले, 7 वीं शताब्दी भारतीयों द्वारा इस नाम से जाना जाता था 634/5 में झांग्ज़ुंग ने पहली बार तिब्बती सुजरेनिटी को स्वीकार किया, और 653 में एक तिब्बती आयुक्त (मनन) को वहां नियुक्त किया गया था। 662 में नियमित प्रशासन शुरू किया गया और 677 में एक असफल विद्रोह हुआ।

 8 वीं शताब्दी में, लद्दाख पूर्वी से दबाने तिब्बती विस्तार के बीच संघर्ष में शामिल था, और पास के माध्यम से मध्य एशिया से चीनी प्रभाव डालता था। 7 9 में एक जनगणना ली गई, और 724 में प्रशासन को पुनर्गठित किया गया। 737 में, तिब्बतियों ने ब्रुजा (गिलगित) के राजा के खिलाफ हमला किया, जिन्होंने चीन की मदद मांगी, लेकिन अंततः तिब्बत को श्रद्धांजलि देने को मजबूर किया गया कोरियाई भिक्षु, हायको (704-787) (पिन्यिन: हुई चाओ), भारत द्वारा समुद्र तक पहुंचा और मध्य एशिया के माध्यम से 727 में चीन लौट आया।[4] उन्होंने कश्मीर के उत्तर-पूर्व में झूठ बोलने वाले तीन राज्यों को संदर्भित किया:

 "तिब्बतियों की अभिमानीता के तहत ... देश संकीर्ण और छोटा है, और पहाड़ों और घाटियों को बहुत गड़बड़ी है। मठों और भिक्षुओं हैं, और लोग ईमानदारी से तीन ज्वेल्स की पूजा करते हैं। तिब्बत के राज्य के लिए पूर्व में, कोई भी मठ नहीं है, और बुद्ध की शिक्षा अज्ञात है, लेकिन, इन देशों में, जनसंख्या हू के होते हैं, इसलिए वे विश्वासियों हैं (पेटेक, लद्दाख का साम्राज्य, पृष्ठ 10) "

 रिज़वी बताते हैं कि यह मार्ग केवल पुष्टि करता है कि 8 वीं शताब्दी की शुरुआत में, आधुनिक लद्दाख का क्षेत्र तिब्बती अधिराज्य के तहत था, लेकिन यह कि लोग गैर-तिब्बती स्टॉक से संबंधित थे।

 747 में, चीनी जनरल गाओ झियान्झी के अभियान ने तिब्बत को पकड़ लिया था, जिन्होंने मध्य एशिया और कश्मीर के बीच प्रत्यक्ष संचार को फिर से खोलने की कोशिश की थी। तालास नदी (751) पर कारलुक्स और अरबों के खिलाफ गाओ की हार के बाद, चीनी प्रभाव तेजी से कम हो गया और तिब्बती प्रभाव फिर से शुरू हुआ।

भौगोलिक संप्रदाय हुदद-अल-आलम (9 82) बोलोरियन (बोलोर = बोलू, बाल्तिस्तान) तिब्बत का उल्लेख करते हैं, जहां लोग मुख्य रूप से व्यापारियों और झोपड़ियों में रहते हैं। नेस्टोरियन पार पत्थर में बना हुआ है, जाहिरा तौर पर ड्रैगट्सी (तांगत्से) में पाए जाने वाले सोग्डियन क्रिश्चियन व्यापारियों के कारण, और इसी समय के अरबी शिलालेख इस क्षेत्र में व्यापार के महत्व के साक्ष्य हैं। 842 में तिब्बती राजशाही के पतन के बाद, तिब्बती अभिमतता जल्दी गायब हो गई।

पहला पश्चिम तिब्बती वंश

842 में तिब्बती साम्राज्य के टूटने के बाद, प्राचीन तिब्बती शाही घर के एक प्रतिनिधि न्यीमा-गोन ने पहले लद्दाख वंश की स्थापना की। न्यीमा-गोन के राज्य वर्तमान केंद्र लद्दाख के पूर्व में अपने केंद्र का केंद्र था। यह वह अवधि थी जिसमें लद्दाख ने तिब्बतीकरण किया, अंततः लद्दाख को एक मिश्रित आबादी का एक देश बना दिया, जिसकी प्रमुख नस्लीय तनाव तिब्बती थी। हालांकि, विजय के तुरंत बाद, राजवंश, बौद्ध धर्म स्थापित करने का इरादा, तिब्बत की नहीं, बल्कि उत्तर-पश्चिम भारत, विशेष रूप से कश्मीर के लिए इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म के दूसरे प्रसार को कहा गया है (सबसे पहला तिब्बत में उचित है।) एक प्रारंभिक राजा, एलडी-डिप्ल-एचखोर-बत्सान (c 870-9 00), में बॉन धर्म को विकसित करने के लिए एक शपथ शपथ दिलाई लद्दाख और ऊपरी मणहिरस मठ सहित आठ मठों के निर्माण के लिए जिम्मेदार था। उन्होंने धर्म को प्रसारित करने के लिए एचबाम ग्रंथों के बड़े पैमाने पर उत्पादन को प्रोत्साहित किया।  न्यीमा-गोन के वंश के शुरुआती राजाओं के बारे में बहुत कुछ पता नहीं है पांचवां राजा का संस्कृत नाम है, लखन उत्पाला, जिन्होंने कुल्लू, मस्तंग, और बाल्टिस्तान के कुछ हिस्सों पर विजय प्राप्त की।

13 वीं शताब्दी के आसपास, राजनीतिक घटनाक्रमों के कारण, भारत बौद्ध दृष्टिकोण से प्रस्तावों को छोड़ने के लिए कुछ नहीं रहा, और लद्दाख ने तिब्बत से धार्मिक मामलों में मार्गदर्शन प्राप्त करना और स्वीकार करना शुरू किया।

नामग्याल राजवंश

लद्दाख पर केंद्रीय एशिया के लूटने वाले मुस्लिम राज्यों द्वारा लगातार छापे जाने से, लद्दाख के कमजोर और आंशिक रूपान्तरण का कारण बनता है। लद्दाख को विभाजित किया गया था, निचलेदार लद्दाख के साथ राजा टैपाबम ने बेसगो और टेमिस्गम से राज्य किया था, और ऊपरी लद्दाह ने राजा तकोबुम्दे द्वारा लेह और शे के द्वारा किया था। भागन, बाद में बासगो राजा ने लद्दाह के राजा को उखाड़ फेंकते हुए लद्दाख में पुनर्मिलन किया। उन्होंने उपनाम Namgyal (विजयी अर्थ) लिया और एक नई राजवंश की स्थापना की जो आज भी जीवित है। राजा तशी नामग्याल (1555-1575) ने सबसे मध्य एशियाई हमलावरों को पीछे हटाने में कामयाब रहे, और नामग्याल पीक के शीर्ष पर एक शाही किला बनाया। Tsewang Namgyal अस्थायी रूप से नेपाल के रूप में दूर अपने राज्य बढ़ाया जामियांग नामग्याल के शासनकाल के दौरान, बाल्टिस्तान के कुछ मुस्लिम शासकों की जमैयांग की हत्या के जवाब में बाल्टि शासक अली शेर खान आचान द्वारा बाल्टिस्तान पर हमला किया गया था। खान के आक्रमण के दौरान कई बौद्ध गोम्पा क्षतिग्रस्त हुए। आज, इस अवधि से पहले कुछ गोम्पा मौजूद हैं खान के अभियान की सफलता ने अपने दुश्मनों को प्रभावित किया कुछ खातों के अनुसार, जामियांग ने एक शांति संधि सुरक्षित कर लिया और अली शेर खान को अपनी बेटी की शादी में हाथ मिला दिया। जामयांग को मुस्लिम राजकुमारी का हाथ मिला, शादी में ग्याल खतुन के हाथ। सेंगेज नामग्याल (1616-1642), जिसे 'शेर' राजा के नाम से जाना जाता था, जामियांग और ग्याल का पुत्र था।उन्होंने कई गोम्पा और मंदिरों के पुनर्निर्माण के माध्यम से लद्दाख को अपनी महत्वाकांक्षी और उत्साही इमारत के कार्यक्रम से अपनी पुरानी महिमा को बहाल करने के प्रयास किए, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध हेमिस है उन्होंने शाही पैलेस से लेह पैलेस तक शाही मुख्यालय भी चलाया और ज़ांस्कर और स्पीति में राज्य का विस्तार किया, लेकिन मुगल द्वारा पराजित किया गया, जिन्होंने पहले से ही कश्मीर और बाल्तिस्तान पर कब्जा कर लिया था। उनके पुत्र दल्दन नामग्याल (1642-1694) को लेह में एक मस्जिद का निर्माण करके मुगल सम्राट औरंगजेब को सम्मिलित करना था।  हालांकि, बाद में वह कश्मीर के मुगल वायसराय इब्राहिम खान के बेटे फइदाई खान के अधीन मुगल सेना की मदद से, नेमू और बासगो के बीच स्थित चौदयाल के मैदानों में 5 वीं दलाई लामा आक्रमण को हराया।

 कई मुस्लिम मिशनरियों ने लद्दाख में इस अवधि के दौरान इस्लाम का प्रचार किया और कई लद्दाखी लोगों को धर्मांतरण किया। जाम्यांग से ग्याल की शादी के बाद कई बल्टि मुस्लिम लेह में बस गए। व्यापार और अन्य उद्देश्यों के लिए इस क्षेत्र में मुसलमानों को भी आमंत्रित किया गया था।

आधुनिक समय

1 9वीं शताब्दी की शुरुआत में, मुगल साम्राज्य टूट गया था, और सिख शासन पंजाब और कश्मीर में स्थापित किया गया था हालांकि जम्मू के डोगरा क्षेत्र अपने राजपूत शासकों के अधीन रहा, जिनमें से सबसे महान महाराजा गुलाब सिंह थे, जिनके जनरल ज़ोरवार सिंह ने 1834 में लद्दाख पर हमला किया था। राजा Tspsal Namgyal को तबाह कर दिया और Stok को निर्वासित किया गया था। लद्दाख डोगरा शासन के तहत आया और 1846 में जम्मू और कश्मीर राज्य में शामिल किया गया था। यह अभी भी तिब्बत के साथ काफी स्वायत्तता और संबंध बनाए रखा है चीन-सिख युद्ध (1841-42) के दौरान, किंग साम्राज्य ने लद्दाख पर हमला किया लेकिन चीन-तिब्बती सेना हार गई थी।

 तिब्बती कम्युनिस्ट नेता फुनसोक वांग्याल ने तिब्बत के हिस्से के रूप में लद्दाख का दावा किया था। 

 1 9 47 में, विभाजन ने लद्दाख को भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर का एक हिस्सा छोड़ दिया, जिसे श्रीनगर से प्रशासित किया जाना था। 1 9 48 में, पाकिस्तानी हमलावरों ने लद्दाख पर हमला किया और कारगिल और ज़ांस्कर पर कब्जा कर लिया, जो 30 किमी के लेह में पहुंच गया।  सुदृढीकरण सैनिकों को हवा में भेज दिया गया, और गोरखाओं की एक बटालियन ने धीरे-धीरे अपनी तरफ दक्षिण से पैर पर लेह किया। कारगिल 1 9 65, 1 9 71 और 1 999 में फिर से लड़ने का एक दृश्य था।

1 9 4 9 में, चीन ने नुब्रा और सिंकियाग के बीच की सीमा को बंद कर दिया, भारत से मध्य एशिया तक 1000 वर्षीय व्यापार मार्ग को अवरुद्ध कर दिया। 1 9 50 में चीन ने तिब्बत पर हमला किया और दलाई लामा सहित हजारों तिब्बतियों ने भारत में शरण ली। 1 9 62 में, चीन ने अक्साई चिन पर कब्जा कर लिया, और तुरंत सिंकियांग और तिब्बत को जोड़ने वाली सड़कों और पाकिस्तान के साथ संयुक्त रूप से काराकोरम राजमार्ग बनाया। भारत ने इस अवधि के दौरान श्रीनगर-लेह राजमार्ग का निर्माण किया, जिसमें श्रीनगर से लेह के बीच यात्रा का समय 16 दिन से दो में बदल दिया। इसके साथ ही, चीन ने लद्दाख-तिब्बत की सीमा को बंद कर दिया, जिसने 700 वर्षीय लद्दाख-तिब्बत संबंध समाप्त किया। 

 1 9 60 के दशक की शुरुआत के बाद से तिब्बत (चेंग्पा नामधारी सहित) से आने वाले प्रवासियों की संख्या बढ़ गई है क्योंकि वे चीनी द्वारा अपने देश के कब्जे से भाग जाते हैं। आज, लेह में तिब्बत से करीब 3,500 शरणार्थियां हैं उनके पास कोई पासपोर्ट नहीं है, केवल सीमा शुल्क पत्र। लद्दाख में कुछ तिब्बती शरणार्थियों ने दोहरी तिब्बती / भारतीय नागरिकता का दावा किया है, हालांकि उनकी भारतीय नागरिकता अनौपचारिक है। विभाजन के बाद से लद्दाख श्रीनगर में स्थित राज्य सरकार द्वारा शासित किया गया है, कभी भी लद्दाखियों की पूर्ण संतुष्टि के लिए नहीं, जो मांग करता है कि लद्दाख सीधे केंद्र सरकार के रूप में नई दिल्ली से शासित होता है। उन्होंने अपनी मांगों के कारण राज्य सरकार की निरंतर उदासीनता, मुस्लिम पूर्वाग्रह और भ्रष्टाचार का आरोप लगाया। 1 9 8 9 में, बौद्धों और मुस्लिमों के बीच हिंसक दंगों, मुसलमानों के सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार के लिए लद्दाख बौद्ध परिषद का आह्वान करते हुए, जिसे 1 99 2 में हटा दिया गया था। अक्टूबर 1 99 3 में, भारत सरकार और राज्य सरकार ने लद्दाख को अनुमति दी थी। स्वायत्त हिल परिषद की स्थिति 1 99 5 में, लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद का निर्माण किया गया था।

(लेह पैलेस, सेंगेज नामग्याल द्वारा निर्मित)

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