दही-हांडी
दही-हांडी
दही-हांडी एक भारतीय त्यौहार है। यह साल के अगस्त महीने में मनाया जाता है। कुछ लोग, ज्यादातर युवक इकट्ठे होकर एक मानव पिरामिड बनाते हैं। इसके पश्चात् ऊपर एक दही से भरी हांडी लटकी होती है, उसे फोड़ते हैं। इस त्यौहार के भागीदारों को गोविन्दा कहा जाता है।
लोकप्रिय
दही-हांडी भारत के महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। यह कृष्ण जन्माष्टमी का एक हिस्सा है।
उत्सव और पुरस्कार
प्रतिभागियों को 9 स्तरों से नीचे आमतौर पर मिलकर एक पिरामिड बनाते हैं और हांड़ी को तोड़ने के लिए 3 मौके दिये जाते हैं। पुरस्कार के रूप में प्रतिभागियों को रुपये दिये जाते हैं।
आधिकारिक नाम |
दही-हांडी |
अनुयायी |
हिन्दू ,भारतीय |
दही हांडी के त्यौहार की जानकारी
दही हांडी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के समय मनाया जाने वाला एक अतिविख्यात उत्सव है. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार भगवान कृष्ण के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. इस अवसर पर पहले श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है और उसके बाद दही हांडी का उत्सव मनाया जाता है. दही हांडी के दौरान कई युवा एक साथ दल बना कर इसमें हिस्सा लेते हैं. इस उत्सव के दौरान एक ऊंचाई पर दही से भरी हांडी लगा दी जाती है, जिसे विभिन्न युवाओं के दल तोड़ने का प्रयास करते हैं. यह एक खेल के रूप में होता है, जिसके लिए इनाम भी दिए जाते हैं. दही हांडी आमतौर पर किसी वर्ष के अगस्त – सितम्बर के बीच में ही होती है. यहाँ पर इस उत्सव से सम्बंधित आवश्यक बातों का वर्णन किया जा रहा है.
दही हांडी पर्व क्यों मनाते हैं
बाल गोपाल के जन्म के उपलक्ष्य पर दही हांडी का पर्व बहुत धूम धाम से मनाया जाता है. कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण बचपन में दही, दूध, मक्खन आदि बहुत शौक़ से खाते थे. कृष्ण से बचाने के लिए उनकी माता यशोदा अक्सर दही हांडी को किसी ऊँचे स्थान पर रखती थीं, किन्तु बाल गोपाल वहाँ तक भी पहुंचने में सफ़ल हो जाते थे. इसके लिये उनके दोस्त उनकी मदद करते थे. इसी घटना की याद में सभी कृष्ण भक्त अपने दही हांडी का पर्व मनाते हैं.
भारत में दही हांडी पर्व
पूरे भारत
में दही हांडी पर्व
बहुत धूम धाम से मनाया जाता
है. इस समय पूरे
भारत के विभिन्न स्थानों
को धार्मिक
रूप से सजाया जाता
है. इस्कोन
संस्था द्वारा
भी इस पर्व को देश के विभिन्न हिस्सों
में आयोजित
किया जाता
है. भारत
के निम्न
स्थानों पर यह एक उत्सव के रूप में मनाया जाता
है :
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महाराष्ट्र में इसकी रौनक सबसे अधिक देखने मिलती है. यहाँ पर पुणे, जूहू आदि स्थानों पर इस त्यौहार पर खूब रौनक रहती है. पुणे में इसे बहुत अच्छे से पूरे रीति रिवाज के साथ मनाया जाता है. इस पर्व में शामिल होने के लिए यहाँ के युवाओं का जोश देखते ही बनता है. युवाओं के कई दल एक के बाद एक इस दही हांड़ी को तोड़ने का प्रयत्न करते हैं. इस समय महाराष्ट्र के कई हिस्सों में ‘गोविंदा आला रे’ का शोर सुनाई देता है, जिसका अर्थ है भगवान् श्रीकृष्ण आ चुके हैं.
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श्रीकृष्ण का जन्मस्थान मथुरा है. अतः मथुरा में यह पर्व बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है. यहाँ पर देश भर से विभिन्न कृष्ण भक्त इकट्ठे होते हैं और श्रद्धा के साथ यह पर्व मनाते हैं. इस समय पूरे मथुरा को इस तरह से सजाया जाता है कि इसकी शोभा बहुत अधिक बढ़ जाती है. पूरा शहर पावन हो उठता है.
· वृन्दवन भी श्री कृष्ण भक्तों के लिए एक बहुत पावन स्थल है. यहाँ पर श्रीकृष्ण की कई मंदिरें हैं. इन मंदिरों की तरफ़ से लगभग पूरे वृन्दावन में दही हांडी का पर्व आयोजित किया जाता है, ताकि लोगों को श्रीकृष्ण की लीलाओं का ध्यान रहे. वृंदावन चंद्रोदय मंदिर की विशेषता एवं इतिहास यहाँ पढ़ें.
इस तरह से यह भारत के कई क्षेत्रों में मनाया है.
दही हांडी कैसे मनाते हैं
दही हांडी मनाने की प्रक्रिया काफ़ी दिलचस्प होती है. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दुसरे दिन इस पर्व का आयोजन किया जाता है. इस दिन मिट्टी की हांडी में दही, मक्खन, मिठाई, फल आदि भर के एक बहुत ऊंचे स्थान पर टांग दिया जाता है. इसके बाद इसे तोड़ने के लिए विभिन्न युवाओं का दल भाग लेता है. ये सभी दल एक के बाद एक इसे तोड़ने का प्रयास करते हैं. दही हांडी तोड़ने के लिए विभिन्न दल के लोग एक दुसरे के पीठ पर चढ़ कर पिरामिड बनाते हैं. इस पिरामिड के सबसे ऊपर सिर्फ एक ही व्यक्ति चढ़ता है और हांडी तोड़कर पर्व को सफ़ल बनाता है. हांडी तोड़ने वाले दल को कई तरह के उपहारों से नवाज़ा जाता है.
2021 में दही हांडी मनाने की तारीख़
इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 30 अगस्त को मनाया जाने वाला है. अतः दही हांडी पर्व ठीक इसके एक दिन बाद यानि 31 अगस्त को मनाया जाएगा.
दही हांडी त्यौहार से सम्बंधित समस्या
कई बार दही हांडी को तोड़ने की कोशिश करते हुए टोलियों में शामिल लोग घायल हो जाते हैं. चिकित्सकों की माने तो इस प्रथा को निभाते हुए लोगों को ऐसे भी चोटें आ सकती हैं कि उनकी मृत्यु हो जाए. वर्ष 2012 में
लगभग 225 गोविन्दा ज़ख़्मी हो गये थे. अतः इसके लिए महाराष्ट्र सरकार ने कुछ विशेष नियम बनाएं हैं :
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वर्ष 2014 में महाराष्ट्र सरकार ने 12 वर्ष से कम आयु के बच्चे को दही हांडी में भाग लेने की अनुमति नहीं देने की बात कहीं.
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बाद में बॉम्बे हाई कोर्ट ने इसके लिए न्यूनतम आयु सीमा 18 वर्ष की कर दी, अतः दही हांडी में भाग लेने के लिए कम से कम 18 वर्ष की आयु होनी अनिवार्य हो गयी.
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वर्ष 2017 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि 14 वर्ष की आयु से कम वाले बच्चे दही हांडी में हिस्सा नही ले सकेंगे.
· राज्य सरकार ने बॉम्बे हाई कोर्ट को कहा है कि 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को चाइल्ड लेबर एक्ट (1986) के अंतर्गत दही हांडी प्रतियोगिताओं में शामिल नहीं होने दिया जाएगा. हालाँकि कोर्ट ने दही हांडी के लिए बनने वाले ‘ह्यूमन पिरामिड’ की उंचाई की कोई सीमा निर्धारित नहीं की है.
दही हांडी उत्सव क्या है और क्यूँ मानते हैं?
दही हांडी उत्सव क्या है? श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवर पर मनाया जाने वाला दही हांडी उत्सव गुजरात और महाराष्ट्र में बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है. दही हांडी उत्सव भगवान श्री कृष्ण के बचपन की लीलाओं का वर्णन करता है. पूरे गुजरात और महाराष्ट्र में मनाया जाने वाला दही हांडी उत्सव अपने अनेकों रूपों के लिए विख्यात है.
दही-हांडी उत्सव में मटकी तोड़ने प्रतियोगिता होती है. इसमें ऊंचाई पर हांडी को लटकाया जाता है जिसमे दही, बादाम, और सूखे मेवे भरे होते हैं. अलग-अलग इलाक़े से आए युवा गोविंदाओं की टोली हांडी को फोड़ने का प्रयास करती हैं जिसे देखने के लिए हज़ारों के संख्या में लोग आते हैं. हर तरफ गोविंदा आला रे आला के गीत गाए जाते हैं. और पंडाल में तेज आवाज में गाने बजाकर गोविंदाओं की टोली का उत्साह बढ़ाया जाता है. जो टीम हांडी को फोड़ने में सफल होती है उनको इनाम दिया जाता है.
दही हांडी उत्सव क्यूँ मानते हैं?
दही हांडी का त्योहार मनाने की कहानी काफी पौराणिक है. अपने बचपन में श्रीकृष्ण बेहद ही नटखट थे. श्री कृष्ण की बचपन में माखन चुराने की आदत थी और उनके माखन चुराने की आदत से सभी गाँव वाले परेशान थे. श्रीकृष्ण को माखन, दही और दूध काफी पंसद था. उन्हें माखन इतना पंसद था जिसकी वजह से पूरे गांव का माखन चोरी करके खा जाते थे. उनकी माखन चुराने की आदत से मां यशोदा बहुत परेशन रहती थी क्यूंकी हर दिन कोई ना कोई कान्हा की शिकायत करने माता यशोदा के पास ज़रूर आ जाता था. रोज रोज के शिकायत से परेशान होकर एक दिन माता यशोदा ने उन्हें एक खंभे से बाँध दिया. लेकिन नन्हे कान्हा ने फिर भी माखन चुराना नही छोड़ा. इसी वजह से भगवान श्रीकृष्ण का नाम ‘माखन चोर’ पड़ा.
श्री कृष्ण के माखन चुराने से परेशन होकर वृन्दावन में महिलाओं ने माखन की मटकी को ऊंचाई पर लटकाना शुरू कर दिया ताकि श्रीकृष्ण का हाथ वहां तक न पहुंच सके. लेकिन कृष्ण तो थे ही नटखट उनकी समझदारी के आगे वृन्दावन की महिलाओं यह योजना भी व्यर्थ साबित हुई. श्रीकृष्ण अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक पिरामिड बनाते और ऊंचाई पर लटकाई मटकी से दही और माखन को चुरा लेते थे. वहीं से प्रेरित होकर दही हांडी का चलन शुरू हुआ.
गोविंदा आला रे आला
दही हांडी उत्सव हर साल कृष्ण जन्माष्टमी के दिन मनाया जाता है. जिसमे युवा भाग लेते है और इन युवाओं की टीम में जो लड़का सबसे ऊपर खड़ा होता है और जो मटकी फोड़ता है उसे गोविंदा कहा जाता है और ग्रुप के अन्य लड़कों को हांडी या मंडल कहकर पुकारा जाता है. दही हांडी उत्सव में अलग-अलग इलाक़े की गोविंदाओं की टीम भाग लेती हैं. जो टीम मटकी फोड़ने में सफल होती है उसे इनाम दिया जाता है.
दही हांडी उत्सव 2018 में कब है?
इस साल जन्माष्टमी का पर्व 2 और 3 सितंबर को मनाया जाएगा. क्यूंकी दही हांडी उत्सव जन्माष्टमी के अगले दिन मनाया जाता है इसलिए इस साल दही हांडी 3 सितंबर को मनाया जाएगा.
दही हांडी उत्सव कहाँ मनाया जाता है?
दही हांडी विशेष रूप से गुजरात और महाराष्ट्र में जन्माष्टमी के मौके पर मनाया जाता है. अगर आप महाराष्ट्र या गुजरात जाने का प्लान कर रहे हैं तो इस जन्माष्टमी को जायें और इस बड़े उत्सव की झलक जरूर देखें. तमिलनाडु में दही हांडी को ‘उरीदी’ के नाम से जाना जाता है. दही हांडी उत्सव पूरे भारत में मनाया जाता है लेकिन अलग-अलग नामों से.
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