तीज / हरियाली तीज

हरियाली तीज

हरियाली तीज हरियाली तीज का उत्सव श्रावण मास में शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाया जाता है। यह उत्सव महिलाओं का उत्सव है। सावन में जब सम्पूर्ण प्रकृति हरी चादर से आच्छादित होती है उस अवसर पर महिलाओं के मन मयूर नृत्य करने लगते हैं। वृक्ष की शाखाओं में झूले पड़ जाते हैं।पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे कजली तीज के रूप में मनाते हैं।  सुहागन स्त्रियों के लिए यह व्रत काफी मायने रखता है। आस्था, उमंग, सौंदर्य और प्रेम का यह उत्सव शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है चारों तरफ हरियाली होने के कारण इसे हरियाली तीज कहते हैं। इस मौके पर महिलाएं झूला झूलती हैं, लोकगीत गाती हैं और खुशियां मनाती हैं।  

[{हरियाली तीज पर कविता:-

हरियाली तीज सत्यार्थ*

श्रावण मास में खिल जाती है

    प्रकर्ति हरित रूप पुष्प हर पात।

स्वच्छ नभ् मंडल अलौकिक होता

    इंद्रधनुष सप्त रंगी मुस्काता स्व द्रष्टात।।

रच जाती स्वयं नवरंगों

     और इठलाती मद्य मोहनी चमन।

धरा चमकती पड़ सूर्य प्रभा

    चल रूकती ले मद गंघ पवन।।

यौवन नारित्त्व बन भाषित होता

                  हर नवयौवना नार।

नर में भी प्रस्फुटित होता

     प्राकृतिक कामनाएं ले उपहार।।

यही अभिव्यक्ति होती

             मैं और तू है एक दूजे पूर्ण।

मिलन का अभिसार गीत गाता

        चन्द्र रश्मि धरा बहाता परिपूर्ण।।

झरने नदी चर्मोउत्कृष् पे होते

        चंचलता तोड़ती नव मोड़ती तट।

समुन्द्र उन्हें आमन्त्रण देता

      मिल जा मुझमें खोल ह्रदय के पट।।

बिजली गिरती बादल फटते

      घोर गर्जन है ऋतु प्रसन्नता।

प्रलय संग नव सृजन होता

     अद्धभुत नाँद श्रवण अभिनवता।।

मोर नाचते काम पंखों संग

       कूह पीहू टर चिन जग ध्वनि।

धुल जाते प्रकर्ति माँ हाथों

       स्नान कर पग से ले कर कँगनी।।

नवयौवन प्रतीक हरित है

             उससे बढ़ता रंग महत्त्व।

इसी रचना को हाथ अंग रचाती

         नवयौवना बना प्रेम प्रतीक महत्त्व।।

जो अंदर है वही है बाहर

    प्रेम कामनाये महंदी रंग खिलती।

अंग प्रत्यंग महाभाव को करता

     प्रकट महंदी रच आनंद को मिलती।।

अर्थ मिल काम संग धर्म है

              यही तीन तीज है अर्थ।

मोक्ष प्रकर्ति विषय नही है

     जीवन जीवंत प्रेम हरित है अर्थ।।

यो हरियाली तीज है कहते

        यो मनाते इसे मध्य हर वर्ष।

यही जानना ज्ञान व्रत है

       जो जाने पाये जीवन प्रेम नवहर्ष।।

 हरियाली तीज व्रतार्थ:-*

तीन झूट ताज्य् करें

              पति पत्नी छल कपट।

दूजे की निंदा नही

               और दूजे धन झपट।।

ईश्वर इस जगत में

                    बटा है तीन तत्व।

पुरुष स्त्री और बीज

      यही तीज अर्थ ज्ञान गत्व।।

ईश्वर तीन स्वरूप में

                    इच्छा क्रिया ज्ञान।

हरी ईश्वर याली संसार है

   यही हरियाली तीज अर्थ मान।।

तीन काल तीन गुण

                   तीन देव तीन देवी।

ईश्वर जीव माया तीन

      गुरु शिष्य विद्या तीन खेवी।।

जो इन तीन ज्ञान जानता

       और सदा करता इन्हें पालन।

मनवांछित वरदान मिले

  हरियाली तीज व्रत सिद्ध फल पालन।।

(स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी)

जय सत्य सिद्धायै नम:

पर्व की मुख़्य रस्म

इस उत्सव को हम मेंहदी रस्म भी कह सकते हैं क्योंकि इस दिन महिलाये अपने हाथों, कलाइयों और पैरों आदि पर विभिन्न कलात्मक रीति से मेंहदी रचाती हैं। इसलिए हम इसे मेहंदी पर्व भी कह सकते हैं।इस दिन सुहागिन महिलाएं मेहँदी रचाने के पश्चात् अपने कुल की बुजुर्ग महिलाओं से आशीर्वाद लेना भी एक परम्परा है।

 

उत्सव में सहभागिता

इस उत्सव में कुमारी कन्याओं से लेकर विवाहित युवा और वृद्ध महिलाएं सम्मिलित होती हैं। नव विवाहित युवतियां प्रथम सावन में मायके आकर इस हरियाली तीज में सम्मिलित होने की परम्परा है। हरियाली तीज के दीन सुहागन स्त्रियां हरे रंग का श्रृंगार करती हैं। इसके पीछे धार्मिक कारण के साथ ही वैज्ञानिक कारण भी शामिल है। मेंहदी सुहाग का प्रतीक चिन्ह माना जाता है। इसलिए महिलाएं सुहाग पर्व में मेंहदी जरूर लगाती है। इसकी शीतल तासीर प्रेम और उमंग को संतुलन प्रदान करने का भी काम करती है। ऐसा माना जाता है कि सावन में काम की भावना बढ़ जाती है। मेंहदी इस भावना को नियंत्रित करता है। हरियाली तीज का नियम है कि क्रोध को मन में नहीं आने दें। मेंहदी का औषधीय गुण इसमें महिलाओं की मदद करता है।इस व्रत में सास और बड़े नई दुल्हन को वस्त्र, हरी चुड़िया, श्रृंगार सामग्री और मिठाईयो को भेंट करती हैं। इनका उद्देश्य होता है दुल्हन का श्रृंगार और सुहाग हमेशा बना रहे और वंश की व्रिधि हो।

पौराणिक महत्व

कहा जाता है कि इस दिन माता पार्वती सैकड़ों वर्षों की साधना के पश्चात् भगवान् शिव से मिली थीं। यह भी कहा जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए १०७ बार जन्म लिया फिर भी माता को पति के रूप में शिव प्राप्त  हो सके। १०८ वीं बार माता पार्वती ने जब जन्म लिया तब श्रावण मास की शुक्ल पक्ष तृतीय को भगवन शिव पति रूप में प्राप हो सके। तभी से इस व्रत का प्रारम्भ हुआ। इस अवसर पर जो सुहागन महिलाएं सोलह श्रृंगार करके शिव -पार्वती की पूजा करती हैं उनका सुहाग लम्बी अवधि तक बना रहता है। साथ ही देवी पार्वती के कहने पर शिव जी ने आशीर्वाद दीया कि जो भी कुंवारी कन्या इस व्रत को रखेगी और शिव पार्वती की पूजा करेगी उनके विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होंगी साथ ही योग्य वर की प्राप्ति होगी। सुहागन स्त्रियां को इस व्रत से सौभाग्य की प्राप्ति होगी और लंबे समय तक पति के साथ वावाहिक जीवन का सुख प्राप्त करेगी। इस्लिये कुंवारी और सुहागन दोनों ही इस व्रत का रखती हैं।

पर्व का मुख्य केंद्र

हरियाली तीज का उत्सव भारत के अनेक भागों में मनाया जाता है , परन्तु राजस्थान में विशेषकर जयपुर में इसका विशेष महत्त्व है।


हरियाली तीज व्रत कब है इस बार? जानें शुभ मुहूर्त, महत्व मान्यता

इस बार बुधवार11 अगस्त 2021 को हरियाली तीज मनाई जाएगी। श्रावण के पवित्र माह में तीज का त्योहार बहुत ही शुभ माना जाता है। प्रतिवर्ष श्रावण माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरियाली तीज का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन सुहागन स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए भगवान शंकर और मां पार्वती की पूजा अर्चना करती हैं।

हरियाली तीज का महत्व-
हरियाली तीज का पावन व्रत करवा चौथ के व्रत से भी ज्यादा मुश्किल होता है। इस व्रत में पत्नियां अपने पति की लंबी उम्र के लिए उपवास रखती हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव माता पार्वती की पूजा करने एवं व्रत रखने से अखंड सौभाग्य का वर मिलता है। घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है। पति के निरोगी रहने का आशीर्वाद भी प्राप्त होने की मान्यता है।

जानें पूजन सामग्री, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा. हरियाली तीज की पूजन सामग्री-

बेल पत्र,

केले के पत्ते,

धतूरा,

अंकव पेड़ के पत्ते,

तुलसी,

शमी के पत्ते,

काले रंग की गीली मिट्टी,

जनैऊ,

धागा और नए वस्त्र।

पार्वती जी के श्रृंगार की जरूरी सामग्री-

चूडियां, महौर, खोल, सिंदूर, बिछुआ, मेहंदी, सुहाग चूड़ा, कुमकुम, कंघी, सुहागिन के श्रृंगार की चीज़ें। इसके अलावा श्रीफल, कलश, अबीर, चंदन, तेल और घी, कपूर, दही, चीनी, शहद ,दूध और पंचामृत आदि।

हरियाली तीज पूजन विधि-

* तीज के दिन महिलाएं सुबह से रात तक व्रत रखती हैं। इस व्रत में पूजन रात भर किया जाता है।

* इस उपलक्ष्य में बालू के भगवान शंकर माता पार्वती की मूर्ति बनाकर पूजन किया जाता है।

* एक चौकी पर शुद्ध मिट्टी में गंगाजल मिलाकर शिवलिंग, रिद्धि-सिद्धि सहित गणेश, पार्वती एवं उनकी सहेली की प्रतिमा बनाई जाती है।

* प्रतिमा बनाते समय भगवान का स्मरण करते रहें और पूजा करते रहें।

* पूजन-पाठ के बाद महिलाएं रात भर भजन-कीर्तन करती है।

* हर प्रहर को इनकी पूजा करते हुए बिल्व-पत्र, आम के पत्ते, चंपक के पत्ते एवं केवड़ा अर्पण करने चाहिए और आरती करनी चाहिए।

 साथ में इन मंत्रों बोलना चाहिए। जब माता पार्वती की पूजा कर रहे हो तब-

उमायै नम:,

पार्वत्यै नम:,

जगद्धात्र्यै नम:,

जगत्प्रतिष्ठायै नम:,

शांतिरूपिण्यै नम:,

शिवायै नम:

भगवान शिव की आराधना इन मंत्रों से करनी चाहिए-

हराय नम:,

महेश्वराय नम:,

शंभवे नम:,

शूलपाणये नम:,

पिनाकवृषे नम:,

शिवाय नम:,

पशुपतये नम:,

महादेवाय नम:

हरियाली तीज 2021 पूजन के शुभ मुहूर्त-

हरियाली तीज व्रत रखने की तारीख- बुधवार, 11 अगस्त 2021

राहुकाल- बुधवार- दोपहर 12:00 से 1:30 बजे तक। (राहुकाल में पूजा नहीं करनी चाहिए)

श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि मंगलवार, 10 अगस्त को शाम 06.11 मिनट से शुरू होगी और 11 अगस्त 2021, बुधवार को शाम 04.56 मिनट पर समाप्त होगी।

अमृत काल- सुबह 01:52 से 03:26 तक

ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 04:29 से17 तक

विजय मुहूर्त- दोपहर 14 से 03.07 तक

गोधूलि बेला- शाम 23 से 06.47 तक

निशिता काल- रात 14 से 12 अगस्त सुबह 12:25 तक

रवि योग- 12 अगस्त सुबह 09:32 से 05:30 तक।

हरियाली तीज व्रत कथा-

हरियाली तीज उत्सव को भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। इस कड़ी तपस्या से माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया।

कथा के अनुसार माता गौरी ने पार्वती के रूप में हिमालय के घर पुनर्जन्म लिया था। माता पार्वती बचपन से ही शिव को वर के रूप में पाना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने कठोर तप किया। एक दिन नारद जी पहुंचे और हिमालय से कहा कि पार्वती के तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु उनसे विवाह करना चाहते हैं। यह सुन हिमालय बहुत प्रसन्न हुए। दूसरी ओर नारद मुनि विष्णुजी के पास पहुंच गए और कहा कि हिमालय ने अपनी पुत्री पार्वती का विवाह आपसे कराने का निश्चय किया है। इस पर विष्णुजी ने भी सहमति दे दी।

नारद इसके बाद माता पार्वती के पास पहुंच गए और बताया कि पिता हिमालय ने उनका विवाह विष्णु से तय कर दिया है। यह सुन पार्वती बहुत निराश हुईं और पिता से नजरें बचाकर सखियों के साथ एक एकांत स्थान पर चली गईं। ने और सुनसान जंगल में पहुंचकर माता पार्वती ने एक बार फिर तप शुरू किया। उन्होंने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और उपवास करते हुए पूजन शुरू किया। भगवान शिव इस तप से प्रसन्न हुए और मनोकामना पूरी करने का वचन दिया। इस बीच माता पार्वती के पिता पर्वतराज हिमालय भी वहां पहुंच गए। वह सत्य बात जानकर माता पार्वती की शादी भगवान शिव से कराने के लिए राजी हो गए।

शिव इस कथा में बताते हैं कि बाद में विधि-विधान के साथ उनका पार्वती के साथ विवाह हुआ। शिव कहते हैं, 'हे पार्वती! तुमने जो कठोर व्रत किया था उसी के फलस्वरूप हमारा विवाह हो सका। इस व्रत को निष्ठा से करने वाली स्त्री को मैं मनोवांछित फल देता हूं।'

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