महामृत्युंजय मंत्र:

 

महामृत्युंजय मंत्र को त्रयंबक मंत्र के नाम से भी जाना जाता है। वास्तव में, महामृत्युंजय मंत्र ऋग्वेद का एक श्लोक है और इसे सबसे शक्तिशाली शिव मंत्र माना जाता है। यह दीर्घायु प्रदान करता है, विपत्तियों को दूर करता है और असमय मृत्यु को रोकता है। यह भय को भी दूर करता है और समग्र रूप से ठीक करता है। 

विशेषज्ञ ने साझा किया कि यह मंत्र आमतौर पर ज्योतिषियों द्वारा उन लोगों को सुझाया जाता है जो पुरानी बीमारियों से पीड़ित हैं। इस मंत्र का प्रतिदिन जाप करने से ऐसी बीमारियों को दूर रखा जा सकता है और आप स्वस्थ रह सकते हैं। रोज सुबह एक माला जाप करना फायदेमंद हो सकता है। 

आयुर्वेद के अनुसार हमारे शरीर में 108 मर्म बिंदु (जीवन शक्ति के महत्वपूर्ण बिंदु) होते हैं। इसलिए, यही कारण है कि सभी मंत्रों का १०८ बार जप किया जाता है क्योंकि प्रत्येक मंत्र हमारी भौतिक आत्मा से हमारे उच्चतम आध्यात्मिक आत्म की ओर एक यात्रा का प्रतिनिधित्व करता है। माना जाता है कि प्रत्येक मंत्र आपको हमारे भगवान के करीब 1 इकाई लाता है। 

महामृत्युंजय मंत्र:

महामृत्युंजय मंत्र (संस्कृत: महामृत्युंजय मंत्र, रोमनकृत: महामृत्युंजय-मंत्र, lit. 'महान मृत्यु जीतने वाला मंत्र'), जिसे रुद्र मंत्र या त्र्यंबकम मंत्र के रूप में भी जाना जाता है, ऋग्वेद (RV 7.59.12) का एक श्लोक (ṛc) है। c को त्रयंबक, "तीन-आंखों वाला" को संबोधित किया जाता है, जो रुद्र का एक विशेषण है जिसे शैव धर्म में शिव के साथ पहचाना जाता है। यजुर्वेद (टीएस 1.8.6; वीएस 3.60) में भी कविता की पुनरावृत्ति होती है। 

मंत्र

महामृत्युंजय मंत्र पढ़ता है:

त्र्य॑म्बकं यजामहे सु॒गन्धिं॑ पुष्टि॒वर्ध॑नम्
उ॒र्वा॒रु॒कमि॑व॒ बन्ध॑नान् मृ॒त्योर्मु॑क्षीय॒ माऽमृता॑॑त् ।। 

oṃ tryámbakaṃ yajāmahe sughandhíṃ puṣṭivardhánam
urvārukamiva bandhánān mṛtyor mukṣīya māmṛtāt
 

जैमिसन और ब्रेरेटन द्वारा अनुवाद:
"हम त्रयंबक को सुगन्धित, समृद्धि बढ़ाने वाले की बलि देते हैं 
एक ककड़ी की तरह उसके तने से, क्या मैं मृत्यु से मुक्त हो सकता हूं, मृत्यु से नहीं।" 

उदगाम (Origin)

मंत्र सबसे पहले आर.वी. 7.59 में प्रकट होता है, जो वशिष्ठ मैत्रवरुणी को जिम्मेदार ठहराया गया एक समग्र भजन है। अंतिम चार छंद (जिसमें महामृत्युंजय मंत्र पाया जाता है) भजन के देर से जोड़ हैं, और वे चार-मासिक अनुष्ठानों में से अंतिम, शाकमेध का संदर्भ देते हैं। शाकमेध का अंत रुद्र त्रयंबक को अर्पित करने के साथ होता है, यही कारण है कि चारों में से अंतिम श्लोक त्रयंबक को संबोधित है। 

महत्व

हिंदुओं का मानना ​​​​है कि मंत्र मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है और इसे मोक्ष मंत्र मानते हैं जो दीर्घायु और अमरता प्रदान करता है। 
यह शरीर के विभिन्न भागों पर विभूति का लेप करते हुए जप किया जाता है और जप (मंत्र दोहराव) या होमा (धार्मिक भेंट समारोह) में उपयोग किया जाता है। 

चमत्कारी है महामृत्युंजय मंत्र, लेकिन जरूरी हैं यह 16 सावधानियां, कब करें इस मंत्र का जाप...

महामृत्युंजय मंत्र जपने से अकाल मृत्यु तो टलती ही है, आरोग्यता की भी प्राप्ति होती है। स्नान करते समय शरीर पर लोटे से पानी डालते वक्त इस मंत्र का जप करने से स्वास्थ्य-लाभ होता है। 

दूध में निहारते हुए इस मंत्र का जप किया जाए और फिर वह दूध पी लिया जाए तो यौवन की सुरक्षा में भी सहायता मिलती है। साथ ही इस मंत्र का जप करने से बहुत सी बाधाएं दूर होती हैं, अतः इस मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए। महामृत्युंजय मंत्र से शिव पर अभिषेक करने से जीवन में कभी सेहत की समस्या नहीं आती।

निम्नलिखित स्थितियों में इस मंत्र का जाप कराया जाता है -

(1) ज्योतिष के अनुसार यदि जन्म, मास, गोचर और दशा, अंतर्दशा, स्थूलदशा आदि में ग्रहपीड़ा होने का योग है।

(2) किसी महारोग से कोई पीड़ित होने पर।

(3) जमीन-जायदाद के बंटवारे की संभावना हो।

(4) हैजा-प्लेग आदि महामारी से लोग मर रहे हों।

(5) राज्य या संपदा के जाने का अंदेशा हो।

(6) धन-हानि हो रही हो।

(7) मेलापक में नाड़ीदोष, षडाष्टक आदि आता हो।

(8) राजभय हो।

(9) मन धार्मिक कार्यों से विमुख हो गया हो।

(10) राष्ट्र का विभाजन हो गया हो।

(11) मनुष्यों में परस्पर घोर क्लेश हो रहा हो।

(12) त्रिदोषवश रोग हो रहे हों।

विशेष फलदायी है महामृत्युंजय मंत्र लेकिन...

महामृत्युंजय मंत्र जप में जरूरी है सावधानियां 

महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है, लेकिन इस मंत्र के जप में कुछ सावधानियां रखना चाहिए जिससे कि इसका संपूर्ण लाभ प्राप्त हो सके और किसी भी प्रकार के अनिष्ट की संभावना रहे। 

अतः जप से पूर्व निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए - 

1. जो भी मंत्र जपना हो उसका जप उच्चारण की शुद्धता से करें।

2. एक निश्चित संख्या में जप करें। पूर्व दिवस में जपे गए मंत्रों से, आगामी दिनों में कम मंत्रों का जप करें। यदि चाहें तो अधिक जप सकते हैं।

3. मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए। यदि अभ्यास हो तो धीमे स्वर में जप करें।

4. जप काल में धूप-दीप जलते रहना चाहिए।

5. रुद्राक्ष की माला पर ही जप करें।

6. माला को गौमुखी में रखें। जब तक जप की संख्या पूर्ण हो, माला को गौमुखी से बाहर निकालें।

7. जप काल में शिवजी की प्रतिमा, तस्वीर, शिवलिंग या महामृत्युंजय यंत्र पास में रखना अनिवार्य है।

8. महामृत्युंजय के सभी जप कुशा के आसन के ऊपर बैठकर करें।

9. जप काल में दुग्ध मिले जल से शिवजी का अभिषेक करते रहें या शिवलिंग पर चढ़ाते रहें।

10. महामृत्युंजय मंत्र के सभी प्रयोग पूर्व दिशा की तरफ मुख करके ही करें।

11. जिस स्थान पर जपादि का शुभारंभ हो, वहीं पर आगामी दिनों में भी जप करना चाहिए।

12. जपकाल में ध्यान पूरी तरह मंत्र में ही रहना चाहिए, मन को इधर-उधर भटकाएं।

13. जपकाल में आलस्य उबासी को आने दें।

14. मिथ्या बातें करें।

15. जपकाल में स्त्री सेवन करें।

16. जपकाल में मांसाहार त्याग दें।

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